राजनीति विज्ञान- सहकारी संगठन के प्रकार [Types of Co-operative Organisation]

Types of Co-operative Organisation
सहकारी संगठन के प्रकार 

सहकारी संगठन के प्रकार [Types of Co-operative Organisation]

(1) औद्योगिक सहकारी समितियाँ (Industrial Co-peratives)-

औद्योगिक सहकारिता से आशय कारीगरों, औद्योगिक श्रमिकों एवं छोटे उद्योगपतियों की ऐसी सहकारी संस्था से है जो औद्योगिक उत्पादन करने या इस कार्य के लिये सुविधाएं प्रदान करने हेतु स्थापित की जाती हैं। इनको स्थापित करने के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार से हैं -
(i) औद्योगिक कर्मचारियों को कच्चा माल, औजार तथा साज-सज्जा की वस्तुएँ उचित मूल्य पर उपलब्ध कराना।
(ii) सदस्यों को उत्पादन क्रियाओं हेतु अग्रिम (Advance) देना।
(iii) सदस्यों के उत्पादित माल को उचित मूल्य पर एवं सुविधापूर्वक विक्रय की व्यवस्था करना।
(iv) शासन एवं अन्य सार्वजनिक संस्थाओं से माल की पूर्ति के अनुबन्ध करना तथा सदस्यों की सहायता से पूरा करना।
(v) सदस्यों को व्यवसाय पद्धति, उत्पादन की विधियाँ एवं अन्य प्रकार के प्रशिक्षण हेतु आवश्यक व्यवस्था करना।
(vi) सदस्यों को किराया क्रय पद्धति या आसान किश्तों पर मशीन दिलवाने की व्यवस्था करना।
(vii) कर्मचारियों में उपक्रम के प्रति निष्ठा पैदा करना तथा उनके पारस्परिक सहयोग में वृद्धि करना।

वर्तमान में लगभग 45,300 औद्योगिक सहकारी समितियाँ कार्य कर रही हैं जिनके सदस्यों की संख्या लाख है। सदस्यों की संख्या लगभग 25 लाख है।  मार्च 1966 में औद्योगिक सहकारिताओं के राष्ट्रीय संघ (National Federation of Industrial Co-operatives) का पंजीयन हुआ। यह संघ सदस्य समितियों के उत्पादों के विपणन में सहायता प्रदान करता है।

(2) संग्रहण, वितरण एवं विपणन सहकारी समितियाँ (Storage, Distribution and Marketing Co-operatives)-

राष्ट्रिय सहकारी विकास निगम (The National Co-operatives Development Corporation) का यह दायित्व है कि वह विभिन्न स्तरों पर समितियों की संग्रहण क्षमता को बढ़ाने हेतु नियोजन, संवर्द्धन एवं वित्तीयन करे। वर्तमान
21,000 से भी अधिक ग्रामीण गोदाम तथा 5,100 से अधिक विपणन गोदाम हैं। इसके अतिरिक्त एक बड़ी संख्या में कोल्ड स्टोरेज' (Cold storage) इकाइयाँ हैं।

खाद, बीज, कृषि उपज इत्यादि के वितरण में सहकारी समितियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। भारत में वितरित की जाने वाली कुल खाद का लगभग 55 प्रतिशत सहकारी वितरण पद्धति (Co-operative Distribution System) के माध्यम से बेचा जाता है।

लगभग 3,400 प्राथमिक सहकारी समितियों पर सहकारी विपणन की संरचना का निर्माण किया गया है जो कि देश के सभी महत्वपूर्ण कृषि बाजारों को अपने अधिकार क्षेत्र में लेती हैं। कृषक, दस्तकार, लघु एवं कुटीर उद्योग-धन्धे चलाने वाले व्यक्ति इत्यादि अपने उत्पादित माल के विक्रय हेतु सहकारी विपणन समितियाँ बना लेते हैं। ये समितियाँ अपने सदस्यों को मध्यस्थों के शोषण से बचाती हैं। राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (The National Agricultural Co-operative Marketing Federation) कृषि उपज के अन्तर्राज्यीय निर्यात व्यापार की वृद्धि हेतु प्रयास करता है।

(3) बहुउद्देशीय सहकारी समितियाँ (Multipurpose Co-operatives)-

आदिवासियों/ जनजातियों के आर्थिक विकास हेतु आदिवासी क्षेत्रों में स्थापित प्रारम्भिक सहकारी समितियों का पुनर्गठन किया गया। यह समितियाँ बहुउद्देशीय होती हैं। आदिवासियों को अल्पकालीन, मध्यमकालीन एवं दीर्घकालीन साख उपलब्ध करना, कृषि एवं वन उत्पादों का विपणन, कृषि हेतु आवश्यक खाद बीजइत्यादि की आपूर्ति इत्यादि इन समितियों के मुख्य कार्य होते हैं। आन्ध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, बिहार, पश्चिमी बंगाल एवं ओडिशा में राज्य स्तर पर आदिवासी विकास सहकारी निगमों/संघों (State Level Co-operative Tribal Development Corporations/Federations) की स्थापना की जा चुकी है।

(4) सहकारी साख समितियाँ (Co-operative Credit Societies)-

इन समितियों के दो रूप होते हैं:
(i) शहरी साख समितियाँ (Urban Credit Co-operatives)- ये समितियाँ शहरों में रहने वाले छोटे व्यवसायियों एवं मध्यमवर्गीय लोगों की साख सम्बन्धी आवश्यकताओं पूर्ति हेतु स्थापित की जाती हैं।
(ii) ग्रामीण साख समितियाँ (RuralCredit Co-operatives)- ये समितियां ग्रामीण साख की आवश्यकता की पूर्ति हेतु बनायी जाती हैं। भारत एक कृषि प्रधान देश है। और कृषि के विकास के लिये आवश्यक है कि कृषकों को पर्याप्त मात्रा में साख उपलब्ध हो। इस आवश्यकता को ये समितियाँ पूरा करती हैं।

(5) उपभोक्ता सहकारी समितियों (Consumers Cooperative Societies)-

सामान्यतया ये सहकारी समितियाँ उपभोक्ताओं को मध्यस्थों के शोषण से बचाने के लिये स्थापित में की जाती हैं। भारत जहाँ कुछ व्यवसायी ईमानदारी के लिये विख्यात नहीं , वस्तुत: उनसे रक्षा हेत उपभोक्ताओं द्वारा सहकारी समितियों का सहारा लिया जाता है।
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