जीव विज्ञान - जैव-विविधता का संरक्षण (CONSERVATION OF BIODIVRSITY)

CONSERVATION OF BIODIVRSITY
जैव-विविधता का संरक्षण 

जैव-विविधता का संरक्षण (CONSERVATION OF BIODIVRSITY)

मनुष्य की जनसंख्या में विस्फोटक वृद्धि (Populaion explosion) के कारण जैव-विविधता में लगातार कमी आ रही है। जिसके कारण वनों की लगातार कटाई हो रही है, जिसके परिणामस्वरूप जीवों के प्राकृतिक आवास (Natural habitat) समाप्त होते जा रहे हैं। अत: जैव-विविधता का संरक्षण अतिआवश्यक हो गया है। सम्पूर्ण पृथ्वी पर उपस्थित वनों के क्षेत्रफल में लगातार कमी आती जा रही है और आज उसके 55 भाग पर ही वन शेष बचे हैं। विश्व में प्रतिवर्ष 1,00,000 वर्ग किमी क्षेत्रफल में उपस्थित वनों की कटाई हो रही है। भारतवर्ष में प्रतिवर्ष वनों की कटाई की दर 13,000 वर्ग किमी है। इस प्रकार जैव-विविधता में वनों की कटाई एवं पर्यावरण प्रदूषण के कुप्रभावों के कारण लगातार कमी आ रही है, अत: संरक्षण करना अतिआवश्यक है, अन्यथा एक दिन ऐसा आयेगा जब पृथ्वी पर उपस्थित समस्त जीवधारी समाप्त हो जायेंगे।
जैवविविधता के संरक्षण करने के प्रमुख कारण इस प्रकार हैं
(1) वनों एवं प्राकृतिक सम्पदा (Natural wealth) तथा उसकी जैविक परिपूर्णता (Biological richness) को संरक्षित रखने के लिए।
(2) वायुमण्डल में उपस्थित ओजोन स्तर (Orone layer ) के विघटन, अम्ल वर्ष (Acid rein) एवं पृथ्वी के बढ़ते हुए तापक्रम पर नियन्त्रण करने हेतु। 
(3) अपनी दैनिक आवश्यकताओं (Daily needs), जैसे- भोजन (Food), रेशे (Fibres), इंधन (Fuel) एवं अन्य आवश्यक सामग्रियों की पूर्ति हेतु ।
(4) मनुष्य के अस्तित्व की रक्षा करने हेतु, जो कि प्रजाति विविधता में कमी के कुप्रभावों से आशंकित हैं।
(5) नई हर्बल औषधियों (Herbal medicine), पोषण सम्बन्धी आवश्यकताओं (Nuritional needs), पूरक भोजन
(Supplementary food) प्राप्त करने हेतु ।
(6) पर्यावरण सन्तुलन को बनाये रखने के लिए।

जैव-विविधता संरक्षण के उपाय (Methods of Conservation Biodiversity)

जैव-विविधता के महत्वों को देखते हुए इसका संरक्षण करना अतिआवश्यक हैं। जैव-विविधता के संरक्षण हेतु निम्नलिखित तीन स्तरों पर प्रयास किये जा रहे हैं-
(1) आनुवंशिक विविधता का संरक्षण (Conservation of genetic diversity) आनुवंशिक विविधता के संरक्षण से उस जाति का संरक्षण सम्भव होता है।
(2) जाति विविधता का संरक्षण (Conservation of species diversity)
(3) पारिस्थितिक तन्त्र की विविधता का संरक्षण (Conservation of ecosystem diversity)।
विविधता का संरक्षण निम्नलिखित दो विधियों के द्वारा किया जा सकता है - 
(A) इन- सिटू संरक्षण (In-situ conservation) एवं
(B) एक्स-सिटू संरक्षण (Ex-situ conservation), दोनों प्रकार के संरक्षण एक-दूसरे के पूरक होते हैं।

(A) इन- सिटू संरक्षण (In-situ conservation)- इसके अन्तर्गत जैव-विविधता का संरक्षण उनके मूल आवासों (Original habitats) में ही किया जाता है। हमारे देश में जैव-विविधता के संरक्षण हेतु भारत सरकार ने सन् 1952 में इण्डियन बोर्ड फॉर वाइल्ड लाइफ की स्थापना की है जो कि वन्य-जीवन एवं जैव-विविधता के संरक्षण हेतु निम्नलिखित उपाय अपनाती है-
(1) राष्ट्रीय उद्यानों (National parks) की सहायता से,
(2) अभ्यारण्यों (Sanctuaries) की सहायता से,
(3) प्राणी उद्यानों (zoological parks) की सहायता से।
जून, 1992 तक हमारे देश राष्ट्रीय उद्यान तथा 41 अभ्यारण्य शरणस्थल (Sanctuaries) स्थापित थे। भारत सरकार ने जन्तुओं को उनके स्वयं के पारिस्थितिक तन्त्र में प्रतिबन्धित विकास (Unhindered evoluto) हेतु  बायोस्फियर रिजर्व (Biosphere reserve) की स्थापना की है।

(B) एक्स-सिटू संरक्षण (Ex-situ conservation)- इसके अन्तर्गत जीवों एवं पेड़-पौधों का संरक्षण उनके मूल आवास से दूर ले जाकर किया जाता है। इसके अन्तर्गत पौधों का संरक्षण निम्नलिखित प्रकार के माध्यम से पेड़-पौधों को उनके आवास से दूर स्थापित विभिन्न स्थानों एवं प्रयोगशालाओं में किया जाता है-
(1) वानस्पतिक उद्यानों (Boanical gardens) में,
(2) वानिकी अनुसंधान संस्थाओं (Forestry Research Institutions) में,
(3) कृषि अनुसंधान केन्द्रों (Agricultural Research Institutions) तथा अन्य संरक्षण साधनों के द्वारा।

एक्स-सिटू संरक्षण संरक्षण में पौधों के संरक्षण हेतु निम्नलिखित तीन तकनीकों का उपयोग किया जाता है।
(1) बीज बैंक (Seed Bank),
(2) जीन बैंक (Gene Bank),
(3) इन विट्रो स्टोरेज विधि (In vitro storage method)।
भारतवर्ष में वर्तमान स्थिति में लगभग 33 वानस्पतिक उद्यान, 33 विश्वविद्यालयीन जैविक उद्यान (University Biological Gardens), 107 चिड़ियाघर (Zoo), 49 मृग उद्यान (Dear park) तथा 24 प्राकृतिक प्रजनन केन्द्र (Natural Breeding Centres) इन क्षेत्रों में कार्यरत हैं।
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