राजनीति विज्ञान का क्षेत्र

राजनीति विज्ञान का क्षेत्र
राजनीति विज्ञान

राजनीति विज्ञान का क्षेत्र (scope of Political science)

हर अध्ययन विषय का अपना निश्चित क्षेत्र होता है। क्षेत्र का अभिप्राय इसकी विषय-वस्तु से होता है अर्थात् इसके अन्तर्गत किनकिन विषयों का अध्ययन किया जाता है। राजनीति विज्ञान के क्षेत्र का निर्धारण किंचित दुष्कर कार्य है क्योंकि जीवन का हर क्षेत् न्यूनाधिक रूप से राज्य से जुड़ा है। इस विषय का क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत है जो इसके चरित्र को गतिशील बना देता है। यह राज्य तथा शासन का उसके भूत एवं वर्तमान सन्दर्भ में अध्ययन करता है। इसके साथ सम्भावित प्रकाश
ही यह इनके विकास पर भी डालता है। सत्ता सिद्धान्त (Power theory) ने इसके क्षेत्र को और अधिक विस्तृत कर दिया है। यह मुख्य रूप से अमरीकी राजनीति वैज्ञानिकों की देन है जिनके अनुसार राजनीति विज्ञान का क्षेत्र प्रमुख राजनीतिकओं के औपचारिक अध्ययन तक ही सीमित नहीं है वरन् इसके अन्तर्गत सत्ता के लिए संघर्ष की प्रक्रिया का अध्ययन किया जाता है।
राजनीति विज्ञान की परिभाषा की भाँति ही इसके क्षेत्र के सन्दर्भ में भी दो प्रकार के दृष्टिकोण परिलक्षित होते हैं : परम्परावादी दृष्टिकोण ( Traditional view) तथा आधुनिक या व्यवहारवादी दृष्टिकोण (Moderm or behavioural view)। परम्परावादी दृष्टिकोण, जिसमें गार्नर, गेटिल, गिलक्राइस्ट और ब्लंश्ली आदि के दृष्टिकोण को रखा जा सकता है, के अनुसार राजनीति विज्ञान के अध्ययन-के अन्तर्गत राज्य और सरकार का अध्ययन किया जाता है। 
परम्परावादी दृष्टिकोण से जुड़े दो विद्वानों गिलक्राइस्ट और फ्रेडरिक पोलक ने राजनीति के दो विभाजन किये हैं : सैद्धान्तिक और व्यावहारिक राजनीति। इनका विचार है कि सैद्धान्तिक राजनीति के अन्तर्गत राज्य की आधारभूत समस्याओं का अध्ययन किया जाता है।
इस कोटि में राज्य सरकार, विधि-निर्माण आदि का अध्ययन किया जाता है। व्यावहारिक राजनीति के अन्तर्गत सरकार के वास्तविक कार्य-संचालन का अध्ययन किया जाता है। इस कोटि के अन्तर्गत सरकारों के विभिन्न प्रकार, सरकारों के संचालन तथा प्रशासन कूटनीति आदि विषयों को रखा जा सकता है।
इस प्रकार मोटे तौर पर राजनीति विज्ञान के परम्परावादी दृष्टिकोण के अन्तर्गत मुख्य रूप से राज्य और सरकार के अध्ययन को राजनीति विज्ञान के क्षेत्र के अन्तर्गत रखा गया। चूंकि इनका सम्बन्ध मनुष्य के राजनीतिक जीवन से है अतएव मनुष्य के अध्ययन को भी इसके क्षेत्र
में रखा जा सकता है। राज्यों का आपस में भी पारस्परिक सम्बन्ध होता है अतएव अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध, अन्तर्राष्ट्रीय संगठन तथा अन्तर्राष्ट्रीय विधि जैसे विषयों को भी इसके क्षेत्र में सम्मिलित माना जाता है।
     व्यवहारवादी दृष्टिकोण इससे भिन्न है। यह मात्र राजनीतिक संस्थाओं के संस्थात्मक और ऐतिहासिक अध्ययन से सन्तुष्ट नहीं है वरन् यह मनुष्य के व्यवहार को समग्रता से अध्ययन करना चाहता है-चाहे यह राजनीतिक क्षेत्र में हो या अन्य किसी क्षेत्र में। व्यवहारवादियों का मत है कि राजनीति विज्ञान का अध्ययन क्षेत्र मनुष्य के राजनीतिक व्यवहार अथवा राजनीतिक संस्थाओं तक ही सीमित नहीं होना चाहिए क्योंकि मनुष्य के राजनीतिक क्रियाकलाप उसकेजीवन के सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, नैतिक आदि सभी क्रिया-प्रभावित होते हैं और उन्हें प्रभावित भी करते हैं। अतएव इनका मानना है कि मानव व्यवहार का समग्रता में
अध्ययन भी राजनीति विज्ञान के विषय-क्षेत्र सम्मिलित है।व्यवहारवादी राजनीतिक गतिविधि, राजनीतिक प्रक्रिया और राजनीति सत्ता को भी राजनीति विज्ञान के क्षेत्र में रखते हैं। चार्ल्स, मेरियम, लॉसवेल, डेविड ईस्टन आदि इस श्रेणी के प्रमुख विचारक हैं।
समग्र रूप में राजनीति विज्ञान के अध्ययन क्षेत्र की चर्चा निम्नांकित रूप में की जा सकती है:

1. मनुष्य का अध्ययन ( Study oF Man)

 अन्य सामाजिक विज्ञान की भांति राजनीति विज्ञान भी मूलत मनुष्य से सम्बन्धित है। मनुष्य सामाजिक प्राणी है और वह समाज या राज्य से अपने को पूरा नहीं कर सकता समाज और राज्य में रहकर ही मनुष्य आत्म-निर्भर जीवन की प्राप्ति कर सकता है। मानव के विकास की स्थितियों का निर्माण कर सकता है; उसे अधिकार तथा स्वतंत्रता लरदान करता है, इसलिए मनुष्य का अध्ययन राजनीति विज्ञान के क्षेत्र का पहला बिंदु है।

2. राज्य के अतीत , वर्तमान तथा भविष्य का अध्ययन (Study of Past, Present and Future of State)-

गेटिल ने लिखा है, "राजनीति विज्ञान इस बात का ऐतिहासिक अन्वेषण है कि राज्य क्या रहा है, इस बात का विश्लेषणात्मक अध्ययन है कि राज्य क्या है और राजनीतिक-नीतिशास्त्रीय विवेचना है कि राज्य को क्या होना चाहिए ?" राज्य के समग्रता में अध्ययन से ही राज्य कार्यकरण और इसकी भूमिका का समुचित मूल्यांकन सम्भव हो सकता है।

(i) राज्य के अतीत का अध्ययन (Study of the Past of State)-

इसे राज्य का अध्ययन भी कहते हैं। यह ज्ञान हमें राज्य एवं उसकी विभिन्न संस्थाओं के वर्तमान स्वरूप को समझने तथा भविष्य में उनमें अपेक्षित सुधार लाने के निमित्त क्षमता प्रदान करता है। राज्य के स्वरूप के विषय में विद्वतजनों ने पिछले ढाई हजार वर्षों में गम्भीर मंथन किया है। राज्य के बदलते हुए स्वरूप के साथ साथ मनुष्य की राज्य विषयक धारणा में भी परिवर्तन होता रहा है। कभी राज्य को ईश्वरीय कृपा का परिणाम या शक्ति का प्रतिफल माना जाता था। फिर राज्य को समझौते का परिणाम माना जाने लगा। मार्क्सवादियों ने इसे शक्तिशाली वर्ग द्वारा कमजोर वर्ग के शोषण का साधन माना।

(ii) राज्य के वर्तमान का अध्ययन (Study of the Present or state)-

कहा गया "राजनीति विज्ञान का आरम्भ और अन्त राज्य है।" राज्य के वर्तमान स्वरूप और क्रिया-कलापका अध्ययन राजनीति विज्ञान का सबसे महत्वपूर्ण विषय है। इसके अन्तर्गत हम विभिन्न राजनीतिक संस्थाओं का अध्ययन उसी रूप में करते हैं जिस रूप में वे क्रियाशील हैं। हम राज्यों की प्रकृति कार्य का भी अध्ययन करते हैं। इनके अतिरिक्त राज्य के वर्तमान के अन्तर्गत राजनीतिक दल, दबाव एवं हित-समूह, स्वतन्त्रता एवं समानता, अधिकार एवं कर्तव्य आदि का अध्ययन किया जाता है।

(iii) राज्य के भविष्य का अध्ययन (Study ofuture or State)-

राजनीति विज्ञान वर्तमान के साथ-साथ भविष्य तथा यथार्थ के साथ-साथ आदर्श का भी अध्ययन करता है। इस रूप में राजनीति विज्ञान नीतिशास्त्र के निकट पहुंच जाता है। यहाँ हम राज्य के उद्देश्य या लक्ष्य पर विचार करते हैं। इसमें राजनीतिक आज्ञाकारिता अर्थात् जनता को राज्य की आज्ञा का पालन क्यों करना चाहिये ?-प्रश्न पर भी विचार किया है। इसके अतिरिक्त इसमे व्यक्तियों, समूहों तथा राष्ट्रों के अधिकारों और स्वतन्त्रता तथा मानव -जीवन के अन्तिम उद्देश्यों के परिप्रेक्ष्य में राज्य को कार्यप्रणाली पर विचार किया जाता है।

3. सरकार का अध्ययन  ( Study of Government)- 

राज्य एक अमूर्त संथा है जिसकी इच्छा को मूर्त रूप सरकार द्वारा प्रदान किया जाता है। यों भी सुसंगठित समाज का अस्तित्व तभी सम्भव है जब इसमें व्यवहार के कुछ सर्वमान्य नियम हों, जिन्हें कानून कहते हैं। कानून का निर्धारण करने के लिए, उनका पालन सुनिश्चित करने के लिए और इनके उल्लंघनकर्ताओं को दण्डित करने के लिए सरकार का होना आवश्यक है। सरकार के अभाव में राज्य की परिकल्पना कर सकना कठिन है। वर्तमान समय में शासन के तीन अंग-व्यवस्थापिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिकामाने जाते हैं। इनके संगठन, शक्तियों, कार्यों, कार्य-प्रणाली तथा इनके पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन भी राजनीति विज्ञान में किया जाता है। स्वाभाविक अध्ययन भी इसमें स्वत: आ जाता है।

4. राजनीतिक सिद्धान्त तथा विचारधाराओं का अध्ययन (Study of Political Theories and Idealogies)-

राज्य और व्यक्ति के मध्य सम्बन्धों का प्रश्न सुदीर्घ काल से राजनीतिक चिन्तकों का विचारणीय प्रश्न रहा है। इसे व्याख्यायित करने के लिए सिद्धान्तकारों द्वारा अनेक अवधारणाएँ और सिद्धान्त दिये गये हैं। स्वतन्त्रता, समानता, अधिकार, सम्पत्ति, राजनीतिक, आज्ञाकारिता, सत्ता, क्रान्ति आदि इसी प्रकार की अवधारणाएँ हैं। इसके अतिरिक्त
राज्य और व्यक्ति के सम्बन्धों को व्याख्यायित करने के लिए अनेक प्रकार की विचारधाराएँ भी दी गई हैं यथा व्यक्तिवाद (Individualism), आदर्शवाद (Idealism), समाजवाद (Socialism), साम्यवाद (Communism), अराजकतावाद (Anarchism) आदि। इसके अतिरिक्त राजनीतिक चिन्तकों के विचारों का अध्ययन भी राजनीति विज्ञान में किया जाता है।

5. शासन के व्यावहारिक स्वरूप का अध्ययन (Study of operational Aspcet of Government)-

राजनीति विज्ञान में सैद्धान्तिक अवधारणाओं के साथ-साथ शासन के व्यावहारिक स्वरूप का भी अध्ययन किया जाता है। शासन के स्वरूप निर्धारण में राजनीतिक दलहित समूह तथा जनमत आदि का भी पर्याप्त महत्व होता है। इनके संगठन तथा कार्य प्रणाली का अध्ययन किये बिना राजनीतिक प्रणालियों का समुचित ज्ञान सम्भव नहीं है। वर्तमान समय में किसी राजनीतिक प्रणाली के अध्ययन में संविधान और शासन के औपचारिक संगठन की तुलना में राजनीतिक दल और दबाव समूह के अध्ययन को ही विशेष महत्व दिया जाता है।

6. सत्ता का अध्ययन (Study of Power)-

राजनीति विज्ञान के क्षेत्र में सत्ता केअध्ययन का समावेश व्यवहारवादियों की देन है। लॉसवेलकैप्लान, मार्गन्थो तथा रसेल जैसे विद्वानों ने इसी दृष्टि से राज्य का अध्ययन किया है। विलियम रॉब्सन ने लिखा है, "राजनीति विज्ञान का प्राथमिक सम्बन्ध समाज में सत्ता, इसकी प्रकृति, आधार एवं परिणाम से है।' सत्ता क्या है ? इसका उद्देश्य क्या है ? इसके लिये संघर्ष के कारण क्या हैं ? इस रूप में राजनीतिक गतिविधि या राजनीतिक प्रक्रिया के अध्ययन को भी इसमें समाविष्ट माना जाता है।

7. अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध का अध्ययन (Study of International Relations)

संचार-साधनों की वृद्धि तथा राष्ट्रों की परस्पर आत्मनिर्भरता के कारण अब राष्ट्र परस्पर अन्तरावलंबित हो गये हैं। प्रत्येक राष्ट्र किसी न किसी रूप में और किसी न किसी मात्रा में अनिवार्यत: अन्य राष्ट्रों से सम्बन्धित है। इन सम्बन्धों को ही मोटे तौर पर अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध कहा जाता है। राष्ट्रों के मध्य सम्बन्धों को नियमित करने के लिए कुछ नियम हैं। इन्हें अन्तर्राष्ट्रीय कानून (International Laws) कहा जाता है। अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से राष्ट्रों द्वारा संयुक्त राष्ट्र नामक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की स्थापना की गई है। क्षेत्रीय स्तर पर सहयोग को बढ़ावा देने के लिए तमाम क्षेत्रीय संगठनों की भी स्थापना की गई है। राजनीति विज्ञान के अन्तर्गत इन सभी का अध्ययन किया जाता है।
निष्कर्ष रूप में हम यह कह सकते हैं कि राजनीति विज्ञान का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है। पहले राज्य के कार्य, विधि और स्थापन ही सीमित थे परन्तु कल्याणकारी राज्य की धारणा के साथ के कार्यक्षेत्र में वृद्धि उदय के राज्य अत्यधिक हुई है। क्रमश: अब राजनीतिक गतिविधियों में कहीं भाग लेने लगे चलते दबाव और अधिक लोग हैं। इसके हित समूहराजनीतिक दल तथा जनमत इकाइयाँ कहीं अधिक महत्वपूर्ण और इन्हें भी जैसे हो गई राजनीतिक क्षेत्र में माना जाने लगा।

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