संस्कृत : समास एवं उसके प्रकार


samas & uske prakar
Sanskrit Samas

समासः

परिभाषा:- अनेकेषां_पदानां_एकपदी_भवनं_समासः।

 व्याख्या:-

दो या दो से अधिक पदों का एक पद हो जाना , समास कहलाता है
समासशब्द का शाब्दिक अर्थ होता हैछोटा-रूप
            यथा :- दिनं दिनं प्रति - प्रतिदिनं

समास_विग्रह :- 

            किसी समस्त पद या सामासिक शब्द को उसके विभिन्न पदों एवं विभक्ति सहित पृथक् करने की क्रिया को समास का विग्रह कहते हैं।
समासा: द्विधा :-

1- केवलसमास: ।                 2- विशेषसमास:


केवलसमास: - तत्पुरुषादिसंज्ञाविनिर्मुक्: समाससंज्ञामात्रयुक्: केवलसमास:  
अर्थात् यस् समासस् नास्ति नाम कश्चित् : समास: केवलसमास: इति अभिधीयते (ज्ञायते)  

विशेषसमास: -
विशेषसमास: चतुर्धा -

1- अव्ययीभावसमास: -

सूत्र :- पूर्वपदार्थप्रधानो_अव्ययीभाव:  
         यस्मिन् पूर्वपदस् प्राधान्यं भवति : अव्ययीभावसमास: इति अभिधीयते अव्ययीभावे प्राय: पूर्वपदम् अव्ययमपि भवति एव  
(Note :-
(i) इसका पहला पद या पूरा पद अव्यय होता है।
(ii) उपसर्ग युक्त पद भी अव्ययीभव समास होते हैं।)

यथा:-

 समीपार्थक: - कृष्णस् समीपम् - उपकृष्णम् 
अभावार्थक: - मक्षिकाणाम् अभाव: - निर्मक्षिकम्
योग्यतार्थक: - रूपस् योग्यम् - अनुरूपम् 
वीप्सार्थक: - दिनं दिनं प्रति - प्रतिदिनम्
पदार्थानतिवृ्यर्थक: - शक्तिम् अनतिक्रम्य 
मर्यादार्थक: - मुक्ते: - आमुक्ति: (संसार:)
अभिविध्यर्थक: - बालेभ्: - आबालम् (हरिभक्ति:)
आभिमुख्यार्थक: - अग्निम् अभि - अभ्यग्नि
मात्रार्थक: - शाकस् लेश: - शाकप्रति 
अवधारणार्थक: - यावन्: श्लोका: - यावच्छ्लोकम्
पारेशब्दयुक्: - पारे समुद्रस् - पारेसमुद्रम् 
मध्येशबदयुक्त: - मध्ये गंगाया: - मध्येगंगम्  आदि

2- तत्पुरुषसमास: -

सूत्र :- उत्तरपदार्थप्रधानो_तत्पुरुष:
       यस्मिन् शब्दे उत्तरपदस् प्राधान्यं भवति : तत्पुरुषसमास:  
(Note :-कारक चिन्हों से विग्रह वाला समास तत्पुरुष समास होता है )
यथा:-
प्रथमा तत्पुरूष: - अर्धं ग्रामस् - अर्धग्राम
द्वितीया तत्पुरूष: - गृहं गत: - गृहगत:
तृतीया तत्पुरूष: - नखै: भिन्: - नखभिन्
चतुर्थी तत्पुरूष: - गवे हितम् - गोहितम्
पंचमी तत्पुरूष: - चोरात् भयम् - चोरभयम् 
षष्ठी तत्पुरूष: - वृक्षस् मूलम् - वृक्षमूलम्
सप्तमी तत्पुरूष: - कार्ये कुशल: - कार्यकुशल: आदि।
    .द्विगु: समास:
  सूत्र:- संख्यपुर्वो_द्विगु
     द्विगुसमास: अपि तत्पुरुषस्यैव भेद:  
                 एष: त्रिधा
 (Note:- द्विगु समास में प्रायः पूर्वपद संख्यावाचक होता है।)

   यथा :-

  समाहारद्विगु: - त्रयाणां लोकानां समाहार: - त्रिलोकी 
  तत्रितार्थद्विगु: - षण्णां मातृणाम् अपत्यम् -  षाण्मातुर
   उत्तरपदद्विगु: - पंच गाव: धनं यस् : - पंचगवधन: आदि
  . कर्मधारय: समास:
सूत्र :-तत्पुरुष: समानाधिकरणः कर्मधारय:
कर्मधारयसमास: अपि तत्पुरुषस्यैव एक: अन्: भेद:  कर्मधारयसमास: नवधा
(Note :- कर्मधारय समास में एक पद विशेषण होता है तो दूसरा पद विशेष्य।)

विशेषणपूर्वपद: - नीलो मेघ: - नीलमेघ
विशेषणोत्तरपद: - वैयाकरण: खसूचि: - वैयाकरणखसूचि:
विशेषणोभयपद: - शीतम् उष्णम् - शीतोष्णम् 
उपमानपूर्वपद: - मेघ इव श्याम: - मेघश्याम:
उपमानोत्तरपद: - नर: व्याघ्र: इव - नरव्याघ्र
अवधारणापूर्वपद: - विद्या इव धनम् - विद्याधनम्
सम्भावनापूर्वपद: - आम्र: इति वृक्ष: - आम्रवृक्ष
मध्यमपदलोप: - शाकप्रिय: पार्थिव: - शाकपार्थिव:
मयूरव्यंसकादि: - अन्यो देश: - देशान्तरम् आदि

3- बहुब्रीहिसमास: -

सूत्र :-अन्यपदार्थप्रधानो_हुब्रीहि:
       यस्मिन् पदे पूर्वोत्तरद्वयोरपि प्राधान्यं भवति अपितु कस्यचित् अन्यस् एव शब्दस् प्राधान्यं भवति तत्र बहुब्रीहि समास: भवति  
(Note :-इसमें प्रयुक्त पदों के सामान्य अर्थ की अपेक्षा अन्य अर्थ की प्रधानता रहती है।)
 यथा :-
लम्बोदरः - लम्बम् उदरं यस्य: सः ( गणेश:),
वीणापाणी - वीणा पाणौ यस्या सा ( सरस्वती ),
निलकंठः - निलः कंठः यस्य: सः ( शिव: )  आदि

4- द्वंद्व  समास: - 

सूत्र:-उभयपदार्थप्रधानोद्वन्द्व:
यत्र उभयशब्दयो: प्राधान्यं भवति : समास: द्वन्द्व: इति कथ्यते
(Note :-(i)द्वन्द्व समास में दोनों पद प्रधान होते हैं।

(ii) दोनों पद प्रायः एक दूसरे के विलोम होते हैं, सदैव नहीं।

(iii)इसका विग्रह करने परऔरका प्रयोग होता है।)

 यथा -

 रामकृष्णौ -रामः कृष्णः  
           दंपत्ति - जाया पतिः  
           पितरौ - माता पिता
          पाणिपादं - पाणी पादौ आदि
अद्य एतावदेव अलम्

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