शैवालों का विभाजन (Algae /एल्गी/एल्जी; एकवचन:एल्गै)

छिछले समुद्र की सतह पर उगे हुए तरह-तरह के शैवाल
विभिन्न वैज्ञानिकों के मत से विभिन्न विभागों में किया गया है। एफ. ई. फ्रट्श (F. E. Fristsch) नामक एक महान्‌ शैवालविज्ञानवेत्ता ने शैवालों को ग्यारह विभागों में विभाजित किया है, जो निम्न प्रकार हैं :
(१) मिक्सोफाइसिई - ये शैवाल साधारण कोटि के होते हैं, जिनकी कोशिका में निश्चित केंद्रक नहीं होता, परंतु केंद्रजनित वस्तुएँ कोशिका में विद्यमान रहती हैं। पर्णहरित के अतिरिक्त फाइकोसाइनिन (phycocyanin) तथा फाइकोएरि्थ्रान (phycoerythrin) भी विद्यमान रहते हैं। जनन विखंडन (fission) द्वारा होता है लैंगिक जनन नहीं होता। सूत्रवत्‌ पौधों (filamentous members) में हेटरोसिस्ट्स (heterocysts) विद्यमान होते हैं। किसी किसी में समेरुका (hormogonium) बनता है, जो जनन में सहायक होता है। इस विभाग के पौधे जमीन, वृक्षों के तनों एवं डालियों तथा ईंटों पर और पानी में पैदा होते हैं। एककोशिक शैवाल कभी कभी चिपचिपा पदार्थ पैदा करते हैं और इसी में हजारों की संख्या में पड़े रहते हैं।
(२) यूग्लीनोफाइसिई - ये मीठे पानी या खारे पानी में पाए जाते हैं। बहुधा एकाकी और स्वतंत्र रूप में भ्रमणशील अथवा स्थिर रहते हैं। इनमें पौधों तथा जानवरों के गुण विद्यमान रहते हैं। कोशिका में केंद्रक तथा कशाभिका विद्यमान रहती है। जनन विभाजन द्वारा होता है।
(३) क्लोरोफाइसिई - इन शैवालों में निश्चित केंद्रक तथा पर्णहरित विद्यमान रहते हैं। बर्फीले स्थानों के शैवालों की बनावट में विभिन्नता पाई जाती है। एककोशिक से लेकर सूत्रवत्‌ पौधे तक इनमें मिलते हैं। लैंगिक जनन समयुग्मक से असमयुग्मक तक मिलता है।
(४) ज़ैंथोफाइसिई - इन शैवालों में पर्णपीत (xanthophyll) रंग विद्यमान रहता है। स्टार्च के अतिरिक्त तैल पदार्थ भोज्य पदार्थ के रूप में रहता है। कशाभिका दो होती हैं, जो लंबाई में समान नहीं होतीं। लैंगिक जनन बहुधा नहीं होता। यदि होता है, तो समयुग्मक ही होता है। कोशिका की दीवार में दो सम या असम विभाजन होते हैं।
(५) क्राइसोफाइसिई - इनमें भूरा या नारंगी रंग का वर्णकीलवक (chromatophore) होता है। भ्रमणशील कोशिका में एक, दो या तीन कशाभिकाएँ होती हैं। लैंगिक जनन समयुग्मक ढंग का होता है।
(६) बैसिलेरियोफाइसिई - इनकी कोशिकाओं की दीवारों पर सिकता (बालू) विद्यमान रहती है। दीवार आभूषित रहती है। रंग पीला, या स्वर्ण रंग का, अथवा भूरा होता है। लैंगिक जनन समयुग्मक होता हैं। कभी कभी असमयुग्मक भी होता है।
(७) क्रिप्टोफाइसिई - इनकी प्रत्येक कोशिका में दो बड़े वर्णकीलवक होते हैं, जिनका रंग विभिन्न होता है। इनमें भूरे रंग का बाहुल्य होता है। भ्रमणशील कोशिका में दो असमानकशाभिकाएँ होती हैं। लैंगिक जनन केवल एक प्रजाति में असमयुग्मक होता है।
(८) कैरोफाइसिई - ये पौधों के तने तथा शाखाओं सदृश रूप के बने होते हैं। पर्णहरित रहता है। लैंगिक जनन असमयुग्मक होता है। शुक्राणु में दो कशाभिकाएँ होती हैं। स्टार्च प्रत्येक कोशिका में विद्यमान रहता है। कभी कभी लैंगिक जनन विषमयुग्मक प्रकार का भी होता है।
(९) डाइनोफाइसिई - इस कुल के शैवाल अधिकतर एक कोशिकीय होते हैं, परंतु सूत्रवत्‌ होने की क्षमता धीरे धीरे बढ़ती जाती है, कोशिकीय दीवारें आभूषित रहती हैं। स्टार्च तथा वसा प्रकाश संश्लेषण के फलस्वरूप बनते हैं।
(१०) फीयोफाइसिई - ये अधिकतर समुद्र में पाए जाते हैं। इनका रंग भूरा होता है, क्योंकि इनमें फ्यूकोज़ैथिन (fucoxanthin) विद्यमान रहता है। प्रकाशसंश्लेषण के फलस्वरूप वसा, पॉलिसैकैराइड (Polysaccharides) तथा चीनी बनती है। पौधे सूत्रवत्‌ होते हैं। जनन अंगों में दो कशाभिकाएँ होती हैं। लैंगिक जनन विषमयुग्मक सा होता है। कभी कभी समयुग्मक जनन भी होता है।
(११) रोडोफाइसिई - इस कुटुंब के शैवाल भी समुद्र में पाए जाते हैं। इस कुटुंब में बहुत कम ऐसे शैवाल होते हैं जो मीठे पानी में उगते हैं। वह गुलाबी रंग का होता है, क्योंकि फाइकोएरिअन (Phycoerythrin) नामक वर्णक विद्यमान रहता है। जनन अंग बिना कशाभिका के होते हैं। पौधे सूत्रवत्‌ तथा अधिकतर असाधारण ढंग के होते हैं। लैगिक जनन विषमयुग्मक (oogamous) होता है। सिस्टोकार्प (cystocarp) में फलबीजाणु (corpospores) कहते हैं।
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