विषाणु एक पौधे के बीज की तरह कोशिकीय सूक्ष्म जीव है, जिस तरह एक बीज हजारों वर्षों तक सुरक्षित पड़ा रह सकता है अगर उसे पानी , हवा और मिट्टी नही मिले तो ठीक उसी तरह एक विषाणु को अगर कोई जीवित कोशिका नही मिले तो वह हजारों वर्षों तक सुशुप्तावस्था में पड़ा रहा सकता है। जैसे ही विषाणु को एक जीवित कोशिका मिलती है तो वह जीवित हो उठता है और अपने वंश को बढ़ाने लगता है।
विषाणु जीवित कोशिका में प्रवेश करने के उपरांत, मूल के RNA एवं DNA अनुवांशिक संरचना को अपनी अनुवांशिक सूचना से बदल देता है और संक्रमित कोशिका को अपने जैसे संक्रमित कोशिकाओं का पुनरुत्पादन शुरू कर देता है।
चूंकि एक विषाणु अपने आप प्रजनन नही कर सकता है इसलिए विषाणु को जीवित नही माना जाता है। विषाणु कोशिकीय जीव नही होते है। एक कोशिका से भी छोटे होते है। आसान शब्दों में कहां जाये तो विषाणु न्यूक्लिक अम्ल और प्रोटीन का एक छोटा पैकेट होते है।
लेकिन एक विषाणु और कोशिका में कुछ हद तक समानता भी है जैसे कि उनमें न्यूक्लिक अम्ल का जीनोम होता है जो कि एक आम कोशिका में भी पाया जाता है। वायरस या विषाणु का जेनेटिक वेरिएशन भी होता है और वे अवोल्व भी हो सकते है।
वायरस जीवित है या मरे हुए है ये भी एक सोचने वाली बात है, जिसका उत्तर अभी तक किसी के पास नही है, लेकिन हम ये मान लिए है कि वायरस मृत है। अगर हम उनकी तुलना एक पौधे के बीज से करे तो पाएंगे कि उनकी जिंदगी एक बीज से मिलती जुलती है।
वायरस जीवाणु से भी छोटे होते है क्योंकि जीवाणु एक कोशिकीय जीव है लेकिन विषाणु कोशिकीय जीव है।
विषाणु अकोशिकीय अतिसूक्ष्म जीव हैं जो केवल जीवित कोशिका में ही वंश वृद्धि कर सकते हैं। ये नाभिकीय अम्ल और प्रोटीन से मिलकर गठित होते हैं, शरीर के बाहर तो ये मृत-समान होते हैं परंतु शरीर के अंदर जीवित हो जाते हैं। इन्हे क्रिस्टल के रूप में इकट्ठा किया जा सकता है। एक विषाणु बिना किसी सजीव माध्यम के पुनरुत्पादन नहीं कर सकता है। यह सैकड़ों वर्षों तक सुशुप्तावस्था में रह सकता है और जब भी एक जीवित मध्यम या धारक के संपर्क में आता है उस जीव की कोशिका को भेद कर आच्छादित कर देता है और जीव बीमार हो जाता है। एक बार जब विषाणु जीवित कोशिका में प्रवेश कर जाता है, वह कोशिका के मूल आरएनए एवं डीएनए की जेनेटिक संरचना को अपनी जेनेटिक सूचना से बदल देता है और संक्रमित कोशिका अपने जैसे संक्रमित कोशिकाओं का पुनरुत्पादन शुरू कर देती है।
विषाणु का अंग्रेजी शब्द वाइरस का शाब्दिक अर्थ विष होता है। सर्वप्रथम सन १७९६ में डाक्टर एडवर्ड जेनर ने पता लगाया कि चेचक, विषाणु के कारण होता है। उन्होंने चेचक के टीके का आविष्कार भी किया। इसके बाद सन १८८६ में एडोल्फ मेयर ने बताया कि तम्बाकू में मोजेक रोग एक विशेष प्रकार के वाइरस के द्वारा होता है। रूसी वनस्पति शास्त्री इवानोवस्की ने भी १८९२ में तम्बाकू में होने वाले मोजेक रोग का अध्ययन करते समय विषाणु के अस्तित्व का पता लगाया। बेजेर्निक और बोर ने भी तम्बाकू के पत्ते पर इसका प्रभाव देखा और उसका नाम टोबेको मोजेक रखा। मोजेक शब्द रखने का कारण इनका मोजेक के समान तम्बाकू के पत्ते पर चिन्ह पाया जाना था। इस चिन्ह को देखकर इस विशेष विषाणु का नाम उन्होंने टोबेको मोजेक वाइरस रखा।
विषाणु लाभप्रद एवं हानिकारक दोनों प्रकार के होते हैं। जीवाणुभोजी विषाणु (जीवाणु भोजी या बैक्टीरियोफ़ेज (Bacteriophage) जीवाणुओं को संक्रमित करने वाले विषाणु जीवाणुभोजी या बैक्टीरियोफेज या बैक्टीरियोफाज कहलाते हैं।) एक लाभप्रद विषाणु है, यह हैजा, पेचिश, टायफायड आदि रोग उत्पन्न करने वाले जीवाणुओंको नष्ट कर मानव की रोगों से रक्षा करता है। कुछ विषाणु पौधे या जन्तुओं में रोग उत्पन्न करते हैं एवं हानिप्रद होते हैं। एचआईवी, इन्फ्लूएन्जा वाइरस, पोलियो वाइरस रोग उत्पन्न करने वाले प्रमुख विषाणु हैं। सम्पर्क द्वारा, वायु द्वारा, भोजन एवं जल द्वारा तथा कीटों द्वारा विषाणुओं का संचरण होता है परन्तु विशिष्ट प्रकार के विषाणु विशिष्ट विधियों द्वारा संचरण करते हैं।
विषाणु (Virus)
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