शैवाल के रासायनिक अवयव




इसकी जानकारी १८८३ ई. से शुरु हुई जब स्टैनफर्ड (Stanfurd) ने शैवाल हुई जब स्टैनफर्ड (Stanfurd) ने शैवाल में ऐल्जिनिक (Alginic) अम्ल की उपस्थिति का पता लगाया। विल्सटाटर और स्टॉल (Wilistatter and Stoll) ने शैवालों में पर्णहरित और अन्य रंगीन पदार्थों की उपस्थिति बतइलाई। १८९६ ई. में मोलिश (Molisch) ने सिद्ध किया कि शैवालों की वृद्धि के लिए खनिज लवण आवश्यक हैं। फिर अनेक व्यक्तियों ने जीवाणुओं से पूर्णतया अलग करके संबर्ध विलयन में शैवाल को उगाने का प्रयत्न किया। इनमें सबसे अधिक सफलता प्रिंगशाइम (Pringsheim) को मिली। शैवाल के उपापचय (metabolism) पर कार्य करने का श्रेय पियरसाल (Pearsall) और लूज़ (Loose) को है, जिन्होंने सिद्ध किया कि शैवाल और पौधों में प्रमुख रासायनिक क्रियाएँ प्राय: एक सी ही होती हैं। इनमें विशेष अंतर नहीं है। शैवालों में प्रकाशसंश्लेषण पर एंजेलमान (Engelman) तथा वारवुर्ग (Warburg) का कार्य विशेष रूप से उल्लेखनीय है। शैवालों की रासायनिक क्रियाओं की सविस्तर समीक्षा मीयेर्स और ब्लिंक (Mayers and Blink) ने १९५१ ई. में की। इससे शैवाल के संबंध की वैज्ञानिक और व्यावहारिक जानकारी पर्याप्त रूप से प्राप्त हुई है। शैवाल के श्वसन के संबंध में वातानाबे (Watanabe, 1932-37 ई.) कैल्विन (Calvin, १९५१ ई.), एनी (Eny, 1950 ई.), एंडरसन (Anderson, 1945 ई.) और वेव्स्टर (Webster, 1951 ई.) के अनुसंधान विशेष उल्लेखनीय हैं। इन वैज्ञानिकों के मतानुसार श्वसन ऑक्सीकरण क्रिया है, जिसमें शर्करा के ऑक्सीकरण से ऊर्जा उत्पन्न होती है और शैवाल के निर्माण और वृद्धि में काम आती है।
सभी शैवालों में वर्णक यौगिक, विशेषत: पर्णहरित और कैरोटीन, होते है। किसी किसी में फाइकोसायानिन (Phycocyanin) भी पाया जाता है। यह वर्णक यौगिक प्रकाश के अवशोषण द्वारा ऊर्जा उत्पन्न कर पर्णहरित बनाता है। पर्णहरित प्रकाश ऊर्जा द्वारा इलेक्ट्रॉन निकालता है, जिसके द्वारा यौगिकों के अपचयन में ऊर्जा प्राप्त होती है। अपचयित पदार्थ का पुन: ऑक्सीकरण होकर, प्रकाश द्वारा ऊर्जा का आदान प्रदान होता रहता है। ऐसी ही क्रियाओं से कार्बन डाइऑक्साइड का अपचयन होकर शर्करा, स्टार्च, सेलुलोस आदि और फिर उनसे प्रोटीन, वसा, तेल आदि संश्लेषित होते हैं।

शैवाल के उपाचय के उत्पाद

शैवाल में शर्कराएँ पाई जाती है। कुछ में ग्लूकोस, कुछ में ट्रेहलोस, कुछ में पेंटोस पाए जाते हैं। इनकी मात्राएँ विभिन्न शैवालों में विभिन्न रहती हैं। अनेक शैवालों में स्टार्च पाए जाते हैं। ऐसे सब स्टार्च एक से नहीं होते हैं, कुछ में ग्लाइकोजेन भी पाया गया है। कुछ में लैमिनैरिन नामक शर्करा पाई गई है। शैवाल की कोशिकाओं की भित्ति होती है।
समुद्री शैवाल में ऐगार-ऐगार नामक पॉलिसैकराइड मिलता है। अन्य कई पॉलिसैकराइड विभिन्न शैवालों में मिलते हैं। शैवालों में वसा भी मिलती है। ऐसी वसा में प्रधानतया पामिटिक अम्ल रहता है। स्टेरॉल भी कुछ शैवाल में मिलते हैं। कुछ शैवालों में निटोल भी, जो संभवत: फ्रक्टोग के अपचयन से बनता है, पाया गया है। शैवालों में जो प्रोटीन पाए गए है उनके विघटन उत्पाद, ऐमिनो अम्लों का विस्तार से अध्ययन हुआ है। लगभग १६ ऐमिनो अम्ल अब तक पृथक्‌ किए जा चुके हैं। इनमें सबसे अधिक मात्रा में आर्जिनिन पाया गया।















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