जीव विज्ञान-जैव विविधता में कमी या हानि [LOSS OF BIODIVERSITY]

LOSS OF BIODIVERSITY
जैव-विविधता 

जैव-विविधता में कमी या हानि [LOSS OF BIODIVERSITY]

जैव विविधता में विगत वर्षों से लगातार कमी आती जा रही है जैव विविधता में कमी के प्रमुख कारण मानव का प्रकृति में बढ़ता हस्तक्षेप है।  जैव विविधता में कमी निम्न कारणों से होती है-
(A) प्राकृतिक कारण एवं (B) मानव निर्मित कारण 

(A) प्राकृतिक कारण (Natural Factors)

(1) मृदा, वायु एवं जल प्रदूषण (Soil, air, and water pollution)।
(2) बाढ़, सूखा एवं भूकंप।
(3) अत्यंत कम आबादी का होना या क्रांतिक जनसंख्या का होना।
(4) विदेशी या एक्जॉटिक प्रजातियों का आगमन 
(5) परागण करने वाली स्रोतों (Pollinators) की कमी।
(6) संमरामक रोग।

(B) मानव निर्मित कारक (Man-made factors)-

(1) आवासों का नष्ट होना (Destruction of habitat)- 

मनुष्य अपने स्वार्थ की पूर्ति जैसे- आवास एवं घास के मैदान बनाने, कृषि, खनन, उद्योगों की स्थापना, राजमार्गों एवं सड़कों के निर्माण विस्तार, बांध आदि बनाने के लिए वनों या पेड़ पौधों एवं जंतुओं के प्राकृतिक आवासों को नष्ट कर रहा है जिसके कारण वहां पर उपस्थित जीव-जंतु दूसरे स्थानों पर चले जाते हैं अथवा वे शिकारी का शिकार हो जाते हैं अथवा उनके लिए भोजन की कमी हो जाती है तथा वे रोगों का शिकार हो जाते हैं, जिसके कारण जिसके कारण उस स्थान की जैव-विविधता समाप्त हो जाती है। उदाहरण- हमारे देश में अकेले पश्चिमी घाट में तितलियों की लगभग 370 प्रजातियां उपलब्ध है, जिसमें से लगभग 70 प्रजातियाँ आज विभिन्न कारणों से लुप्तता के कगार पर पहुंच चुकी है

(2) शिकार (Hunting)- 

मनुष्य प्राचीनकाल से ही अपने भोजन एवं अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु जन्तुओं का शिकार करता आया है। जन्तुओं में खाल, टस्क, फर, मांस, औषधियाँ, इत्र, सौन्दर्य प्रसाधन सामग्री एवं शोभाकारी या सजावटी सामग्री के लिए उनका शिकार किया जाता है तथा इनका व्यावसायिक उपयोग किया जाता है, जिनके कारण जन्तु विविधता में कमी आती जा रही हैं।

(3) अतिदोहन (Over exploitation)- 

प्रकृति में उपस्थित पेड़-पौधों एवं जन्तुओं का विभिन प्रकार से उपयोग किया जाता है। आर्थिक रूप से उपयोगी प्रजातियों के साथ-साथ प्रयोगशाला में विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधों एवं जीव-जन्तुओं का उपयोग वृहत स्तर पर होने के कारण उनकी संख्या लगातार कम होती जा रही है और वे विलुप्तता के कगार पर पहुँच चुके हैं। उदाहरण-घटपर्णी, नीटम, साइलोटम पौधे एवं मेढक (राना टिग्रिना) एवं जंतु व्हेल मछली का उपयोग ओषधि बनाने एवं मांस प्राप्त करने में लगातार होने के कारण आज इनकी संख्या भी कम होती जा रही है।
प्रकार पोडोफाइलम एकोनीटम, डायस्कोरिया, राजल्फिया, काप्टिस जैसे पौधों का औषधीय उपयोग होने के कारण इनकी संख्या भी लगातार कम होती जा रही है। इस प्रकार ये अतिदोहन का शिकार हो चुके हैं।

(4) अजायबघरों व अनुसंधान हेतु संग्रहण (Collection for zoo and researches)-

आज सम्पूर्ण विश्व में जंगली पादप एवं जन्तु प्रजातियों को अध्ययन अनुसंधान कार्य एवं औषधियाँ प्राप्त करने के लिए जैविक प्रयोगशालाओं में संग्रहीत किया जा रहा है तथा मनोरंजन हेतु उन्हें अजायबघरों में कैद किया जा रहा है। बन्दर, चिम्पांजी जैसे- प्राइमेट्स का उपयोग अनुसंधान शालाओं में उनके आन्तरिक संरचना एवं अन्य प्रकार के अध्ययनों में किया जाता है, जिसके कारण इनकी संख्या में लगातार कमी आती जा रही है। 

(5) विदेशज प्रजाति का परिचय (Introduction of exotic species)-

आज हम विभिन्न प्रकार की विदेशी पादप एवं जन्तु प्रजातियों का आयात कर अपने स्वार्थ की पूर्ति करते हैं। इन विदेशी पादप प्रजातियों के आगमन या परिचय के कारण देशी प्रजातियों के समक्ष भोजन एवं आवास जैसी समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं।

(6) कीटनाशकों का उपयोग (Use of pesticides)-

कीटनाशी एवं खरपतवारनाशी रसायनों के उपयोग ने भी जैव
विविधता को प्रभावित करना प्रारम्भ कर दिया है। इसके लगातार उपयोग के कारण बहुत-सी पादप एवं जन्तु प्रजातियाँ समाप्त होती जा रही हैं।

(7) प्रदूषण (Polution)-

पर्यावरण प्रदूषण आज सर्वाधिक विकराल समस्या है, जिसके कारण आज वायु, जलमृदा, समुद्र, तालाब आदि प्रदूषित हो चुके हैं। इनके कारण जीवधारियों को साँस लेने हेतु शुद्ध वायु पीने के लिए शुद्ध जल, पौधों की वृद्धि के लिए शुद्ध मृदा एवं जलीय जन्तुओं के आवास हेतु प्रदूषण रहित जल मिलना मुश्किल हो गया है। अत: वे विभिन्न प्रकार की बीमारियों का शिकार होते जा रहे हैं। परिणामस्वरूप इनकी मृत्यु हो जाती है। इस प्रकार प्रदूषण के कारण भी जैव-विविधता में लगातार
कमी होती जा रही है।

(8) पारिस्थितिक स्थानापन्न (Ecological sub-stitution)-

जब किसी स्थान पर कोई नई प्रजाति का समावेश किया जाता है तो वह प्रजाति उस स्थान के अधिकांश भाग को घेर लेता है, जिसके कारण पूर्व की प्रजातियाँ स्थानाभाव के कारण लुप्त होने लगती हैं।

(9) अन्य कारण (Other causes)-

(i) जीवों की प्रजनन क्षमता में कमी होना।
(ii) खाद्य श्रृंखला में जीवधारी की स्थिति।
(iii) वितरण समा।
(iv) विशिष्टीकरण की सीमा ।
(v) सामाजिक एवं आर्थिक कारण।
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