राजनीति शास्त्र- पिछड़े वर्गों का विकास

पिछड़े वर्गों का विकास
राजनीति विज्ञान

पिछड़े वर्गों का विकास (Development of Backward Classes)

"हम यह अनुभव करते हैं कि पिछड़ेपन के लक्ष्य और कामचलाऊ परिभाषा के अभाव में विशेषाधिकारों के लिए जन्म पर आधारित पिछड़े समुदाय बढ़ते जा रहे हैं। एक भूमिहीन श्रमिक को, बिना यह देखे कि वह किस समुदाय का है, सहायता की आवश्यकता है। यही सिद्धान्त बेघरबार, बेरोजगार, अज्ञानी तथा बीमार व्यक्ति पर लागू होता है।"                               -रेणुका अध्ययन दल की एक टिप्पणी
भारतीय संविधान जैसा कि प्रस्तावना से स्पष्ट है, एक सम्प्रभु, धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी लोकतान्त्रिक गणराज्य की स्थापना को अपना उद्देश्य घोषित करता है। यह एक ऐसी राजनीतिक व्यवस्था को अपना उद्देश्य मानता है जिसमें हर व्यक्ति की सत्ता में भागीदारी हो। संविधान सभा में इस बात पर पर्याप्त विचार-विमर्श हुआ कि समाज के कमजोर या पिछड़े वर्गों को सामान्य जनों के लगभग समकक्ष लाकर ही एक समतावादी समाज के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है

पिछड़े वर्ग का अभिप्राय (Meaning of Backward Class)

पिछड़े वर्गों में दो प्रकार की जातियों को सम्मिलित कियाजाता है- (क) अनुसूचित जाति तथा जनजाति तथा (ख) अन्य पिछड़े वर्ग। 
जो वर्ग विकास की दौड़ में पीछे हैं परन्तु जिन्हें अनुसूचित जाति या जनजाति की सूची में नहीं शामिल किया गया है, इन्हें ही अन्य पिछड़े वर्ग या Other BackwardClasses (OBC) कहा जाता है। संविधान में कई स्थानों पर 'कमजोर वर्ग' (weaker sections) वाक्यांश शब्द का प्रयोग किया गया है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि संविधान निर्माता इस कोटि में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के अतिरिक्त भी कुछ अन्य वर्गों को रखना चाहते थे किन्तु उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि ये वर्ग कौन-से होंगे?
सुभाष कश्यप द्वारा सम्पादित राजनीति कोश के अनुसार, "पिछड़े हुए वर्गों का अभिप्राय समाज के उस वर्ग से है जो सामाजिक, आर्थिक तथा शैक्षिक निर्योग्यताओं के कारण समाज के अन्य वर्गों की तुलना में समाज के निचले स्तर पर हों। संविधान में दो स्थानों (अनुच्छेद 16 एवं अनुच्छेद 340) पर इसका प्रयोग हुआ है परन्तु इसे परिभाषित किया गया है।"
       पिछड़े वर्गों या अन्य पिछड़े वर्गों को न तो अनसचित जाति की श्रेणी में रखा जा सकता है और न ही अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में और न ही इन्हें अपने आप में कोई भी माना जा सकता है। आम तौर पर इन्हें एक ऐसा कमजोर वर्ग माना जा सकता है जिसके सदस्य उच्च जाति समूहों से नीचे और निम्न जातियों से उच्च होते हैं। वस्तुत: पिछड़े वर्ग से अभिप्राय उच्च और निम्न जाति समूहों के मध्य स्थिति समूह से है जो सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक तथा सांस्कृतिक दृष्टि से पिछड़े हैं। सरकार द्वारा सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों (Socially Educationally Backard classes) को पिछड़े वर्ग की श्रेणी में रखा गया है।

पिछड़े वर्ग की मुख्य विशेषताएं (Main Characteristics of Backard Classes)

पिछड़े वर्गों की सामान्यतया निम्नांकित विशेषताएं बतायी जा सकती हैं
(1) पिछड़े वर्ग का आशय उन वर्गों से किया जाता है जो उच्च जातियों से निम्न और निम्न जातियों के मध्य में होती हैं।
(2) पिछड़े वर्ग प्राय: लघु भू-स्वामी हैं अथवा छोटी नौकरियों में हैं।
(3) मात्रात्मक या संख्यात्मक दृष्टि से पिछड़े वर्गों का आधिक्य है परन्तु इनमें इतनी जातियाँ हैं कि इनमें सांस्कृतिक दृष्टि से समेकता नहीं पायी जाती।
(4) अन्य जातियों की तरह पिछड़े वर्ग की सदस्यता भी जन्म से निर्धारित होती है।
(5) भारतीय संविधान पिछड़ेपन का आधार सामाजिक और शैक्षणिक मानता है।
(6) घोषित पिछड़ी जातियाँ सरकार द्वारा प्रदत्त लाभों और सुविधाओं को प्राप्त करने के लिए अधिकृत है। यही कारण है कि समय-समय पर तमाम जातियाँ यह माँग करती रहती है कि उन्हें पिछड़े वर्ग में सम्मिलित किया जाये, तथा
(7) पिछड़े वर्गों को अन्य वर्षों के बराबर लाने के लिए नौकरियों में आरक्षण किया गया है। ।

संवैधानिकप्रावधान (ConstitutionalProvisions)

जैसा कि ऊपर भी उल्लेख किया है कि संविधान में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि किन जातियों या वर्षों को पिछड़े वर्गों में सम्मिलित किया जायेगा। ऐसी स्थिति में यह केन्द्र तथा राज्य सरकार के ऊपर है कि वह किन वर्गों/जातियों को इस श्रेणी में सम्मिलित करती है।
अनुच्छेद 15 (4) के अन्तर्गत राज्य को सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्ग के लिए विशेष प्रावधान करने हेतु अधिकृत किया गया है।
अनुच्छेद 16 (4) के अन्तर्गत राज्य को यह अधिकार प्राप्त है कि वह इस वर्ष के लिए सरकारी सेवाओं में स्थान आरक्षित कर सकती है।
अनुच्छेद 340 (1) के अन्तर्गत राष्ट्रपति को सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े हुए वर्गों की दशाओं तथा उनकी कठिनाइयों के अनुसंधान के लिए एक आयोग को नियुक्ति करने की शक्ति प्राप्त है। आयोग जगत वर्षों की कठिनाइयों को दूर करने के उपायों के बारे में या
लिये दिये जाने वाले अनुदान या अनुदान की शतों आदि के बारे में सत्र या राज्य सरकारों को अपनी सिफारिश भेजेगा। राष्ट्रपति आयोग द्वारा प्रेषित सिफारिशों को, उन पर की गई कार्यवाहीसहित संसद के समक्ष रखवायेगा।
चूंकि पिछड़े वर्गों को संविधान द्वारा सूचीबद्ध नहीं किया गया है और इस संदर्भ में द्वारा भिन्न-भिन्न सूचियों का निर्माण किया गया है।
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