ENDANGERED SPECIES
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लुप्तप्राय या संकटापन्न जीव (ENDANGERED SPECIES)
अब विभिन्न कारणों से विश्व के कई जीव को कभी पर्याप्त मात्रा में पाये जाते थे, या तो विलुप्त हो गये हैं या जल्दी ही विलुप्त होने वाले हैं। अकेले हमारे देश में अब तक लगभग 200 किस्म के पशु-पक्षी विलुप्त हो चुके हैं तथा लगभग 800 किस्म के वन्य जीवों के विलुप्त होने की आशंका है। इनमें से भी लगभग 250 किस्म के वन्य जीव तो विलुप्त होने के लिए तैयार हैं। उदाहरणार्थ- पिग्मी, चिम्पांजी, तेंदुआ (Leopard), सिंह (Lion), चीता (Cheetah), बाघ (Tiger), जगुआर (Jaguar, एक प्रकार का चीता), ध्रुवीय भालू, हाथी, पर्वतीय गोरिल्ला, गैंडे की कई जातियाँ तथा कुछ पक्षियों, जातियां विलुप्तप्राय हैं, क्योंकि मनुष्य इनका अन्धाधुन्य उपयोग- शिकार, भोजन, त्वचा इत्यादि के लिए करता आ रहा है।
इसी प्रकार पौधों की बहुत-सी प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं तथा शेष विलुप्तता के कगार पर खड़ी हैं।
उदाहरण- बारबेरिस, नीलग्रिएन्सिस, बेंटेकिया निकोबेरिका, क्यूप्रेशस केशमेरिआनो आदि।
लप्तप्राय या संकटापन्न प्रजातियों के प्रकार (Types or Endangered Species)
द इण्डियन प्लाण्ट्स रेड डाटा बुक में संकटापन्न प्रजातियों को निम्नलिखित समूहों में किया गया है-
(1) विलुप्त (Extinct)- ऐसे पौधे, जो कि पूर्व में किसी स्थान विशेष में पाये जाते थे, लेकिन वर्तमान में वे अपने प्राकृतिक स्थानों से लुप्त हो गये हैं, उन्हें ही विलुप्त प्रजातियाँ कहते हैं। ऐसे पौधे जब उनके प्राकृतिक आवास स्थानों पर उपलब्ध नहीं होते, तब इन्हें विलुप्त प्रजाति माना जाता है। अत: इनका संरक्षण असम्भव होता है।
(2) लुप्तप्राय (Endangered)- ऐसी पादप प्रजातियाँ जो कि लुप्त होने की स्थिति में हों एवं यदि वही पारिस्थितिक परिस्थितियाँ बनी रहें, तब उन्हें विलुप्त होने से नहीं बचाया जा सकता है अर्थात् जिन प्रजातियों के लुप्त होने का खतरा बना रहता है। उन्हें लुप्तप्राय या इनडेन्जर्ड प्रजाति कहते हैं। ऐसी प्रजातियों की संख्या धीरे-धीरे इतनी कम हो जाती है कि उनमें प्रजनन की सम्भावनाएँ लगभग समाप्त हो जाती हैं, जिसके कारण धीरे-धीरे ये विलुप्त होने लगती हैं।
(3) वल्नरेबल (Valnerable)- ऐसी पादप प्रजातियाँ जो कि कुछ ही समय में लुप्तप्राय स्थिति में पहुँचने वाली हों, उन्हें ही वल्नरेबल प्रजातियां कहते हैं। यदि इन्हें लगातार उन्हीं पारिस्थितिक स्थितियों का सामना करना पड़ता है, तब ये प्रजातियाँ भी लुप्त होने लगती है।
(4) दुर्लभ (Rare)- ऐसी पादप प्रजातियाँ जो कि संसार में कहीं-कहीं पर और बहुत कम संख्या में उपलब्ध हों, उन्हें ही दुर्लभ प्रजातियाँ कहते हैं। ऐसी प्रजातियां प्रारम्भ से ही लुप्तप्राय या वल्नरेबल नहीं होतीं लेकिन धीरे-धीरे लुप्तप्राय स्थिति में आ जाती हैं और अन्त में समाप्त हो जाती हैं।
(5) अपर्याप्त जानकारी (Insufficient knowledge)- ऐसी पादप प्रजातियाँ जिनके सम्बन्ध में यह नहीं कहा जा सकता है कि वे किस समूह (1 से 4) के अन्तर्गत आते हैं, ऐसी प्रजातियों के बारे में हमें सही जानकारी नहीं मिल पाती, लेकिन धीर-धीर ये लुप्तप्राय स्थिति में आ जाती है।
(6) खतरे से बाहर (Out of dange)- ऐसी समस्त पादप प्रजातियाँजो कि उपरोक्त श्रेणियों (1 से 5) के अन्तर्गत पहुँच चुकी होती हैं, लेकिन उनके संरक्षण के पश्चात् पूर्व के वास्-स्थान पर स्थापित हो जाती हैं, उन्हें इस समूह के अन्तर्गत रखा जाता है।
सन् 1980 में भारतीय वानस्पतिक सर्वे संस्थान (Boanical Suracy of India) ने ‘थ्रेटेण्ड प्लांट ऑफ इण्डिया' (Threatened Plants of India) नामक पुस्तक में संकटापन्न पौधों का वर्णन किया है। सन् 1984 में बी.एस.आई. (BSI) ने पुन: एक नयी पुस्तक "द इण्डियन प्लाण्ट्स रेड डाटा बुक" (The Indian Plants Red Data Book) का प्रकाशन किया, जिसमें 125 संकटपन्न आवृत्तबीजी पौधों का वर्णन किया गया हैं।
जीव विज्ञान - लुप्तप्राय या संकटापन्न जीव [ENDANGERED SPECIES]
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