धारिता

धारिता

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किसी चालक की वैद्युत धारिता (कैपेसिटी या कैपेसिटेंस), उस चालक की वैद्युत आवेश का संग्रहण करने की क्षमता की माप होती है। जब किसी चालक को आवेश (आवेश पदार्थ का एक गुण है! पदार्थो को आपस में रगड़ दिया जाये तो उनमें परस्पर इलेक्ट्रोनों के आदान प्रदान के फलस्वरूप आकर्षण का गुण आ जाता है।) दिया जाता है तो उसका वैद्युत विभव आवेश के अनुपात में बढता जाता है। यदि किसी चालक को q आवेश देने पर उसके विभव में V वृद्धि हो, तो
q अनुक्रमानुपाती V
q = CV
जहाँ C एक नियतांक है जिसका मान चालक के आकार, समीपवर्ती माध्यम तथा पास में अन्य चालकोँ की उपस्थिति पर निर्भर करता है। इस नियतांक को 'वैद्युत धारिता' कहते हैँ। ऊपर के समीकरण q = CV से
C = q / V
इस प्रकार, किसी चालक की वैद्युत धारिता चालक को दिये गये आवेश तथा चालक के विभव में होने वाली व्रिद्धि के अनुपात को कहते हैँ। धारिता का SI मात्रक कूलाम/वोल्ट है। इसे 'फैरड' कहते है तथा इसे F से निरुपित करते हैं। इस प्रकार,
1 फैरड =1 कूलाम/वोल्ट
धारिता का emu में मात्रक ‛स्टेट फैरड’ होता है।
1 फैरड =9×1011 स्टेट फैरड
1 माइक्रोफैरड = 10-6 फैरड
1 नैनोफैरड=10-9 फैरड
1 पीकोफैरड=10-12 फैरड
इसी प्रकार C=q/v से-
यदि v=1वोल्ट, C=q तो किसी चालक की वैद्युत धारिता चालक को दी गयी आवेश की वह मात्रा है जो चालक के विभव में एक वोल्ट का परिवर्तन कर दे।
वैधुत धारिता एक अदिश राशि (जिन राशियों में सिर्फ परिमाण होता है उन्हें अदिश राशि कहते हैं, जैसे - चाल, दूरी, द्रव्यमान, आयतन, समय, ताप, कार्य,बिधुत धारा, दाब, ऊर्जा इत्यादि। जिस भौतिक राशि में मात्रा (परिमाण) तथा दिशा दोनो निहित होते हैं उन्हें सदिश राशि कहते है। सदिश राशियों के उदाहरण हैं - वेग, बल, संवेग, त्वरण, विस्थापन,रेखीय संवेग, कोणीय वेग, कोणीय संवेग, चुम्बकीय आघूर्ण,चाल प्रवणता, ताप प्रवणता,विधुत द्विध्रुव आघुर्ण,विधुत धारा घनत्व इत्यादि।) है। वैधुत धारिता का मान सदैव धनात्मक होता है। क्योकि चालक पर आवेश तथा इसके कारण विभव में परिवर्तन के चिन्ह सामान होते हैं।
धारिता का विमीय सूत्र - [T×T×T×T×A×A/M×L×L] है। चालक के माध्यम का परावैद्युतांक बढ़ने से धारिता भी बढती है।
किसी चालक की धारिता निम्न तथ्यों पर निर्भर नहीं करती है-
  • (१) चालक के आवेश पर - q का मान बढ़ने पर v का मान भी उसी अनुपात में बढ़ता है। अतः धारिता नियत रहती है।
  • (२) चालक के पदार्थ पर
नोट - यदि सूत्र c=q/v से v=0 तो c=∞ अतः धारिता अनन्त होगी। चूँकि पृथ्वी का विभव 0 होता है। तो पृथ्वी की धारिता अनन्त होगी। अतः प्रथ्वी अनन्त आवेश संगृहीत कर सकती है।
इसी प्रकार जब हम किसी चालक को आवेश देते है तो चालक के विभव का आंकिक मान बढ़ता है। यदि चालक को आवेश लगातार देते जाये तो चालक स्थतिज ऊर्जा का संचय नहीं कर पता अर्थात वैधुत रोधन क्षमता समाप्त हो जाती है। तथा आवेश लीक होने लगता है। इस स्थिति में विभव का मान अधिकतम होता है। ओर इस प्रकार चालक द्वारा आवेश की एक निश्चित मात्रा का संग्रह ही संभव है।
इसी का परोक्ष उदाहरण यह है की जब हम खाली बर्तन को जल में डालते है तो बर्तन में पानी निश्चित मात्रा तक ही बढ़ पता है और पानी तदुपरान्त बर्तन से बाहर आने लगता है। इसे बर्तन की धारिता कहते है।इसे मिलीलीटर, लीटर आदि से व्यक्त करते है।

आवेशित चालक की वैद्युत स्थितिज ऊर्जा

जब किसी चालक को आवेश दिया जाता है तो वह विभाजित रूप में दिया जाता है। अतः चालक पर पूर्व संचित आवेश के कारण बाह्य आवेश देने पर वैधुत प्रतिकर्षण बल के विरुद्ध कार्य किया जाता है। यही कार्य चालक में वैधुत स्थतिज ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है। जो चालक की स्थतिज ऊर्जा कहलाती है। माना चालक की धारिता C है प्रारम्भ में चालक पर आवेशq तथा विभवV शून्य है। माना चालक को आवेश विभाजित रूप में दिया जाता है जिससे विभव का मान भी बढ़ता है(qअनुक्रमानुपातीV)। आवेश q देने के साथ व V का मान भी बढ़ता है अतः औसत विभव-
V'=प्रारंभिक विभव + अंतिम विभव/2
V'=0+V/2=V/2
वैधुत विभव की परिभाषा से,आवेशq देने पर विभव परिवर्तन होने के साथ किया गया कार्य(v=w/q) से-
v=w/q , w=v×q=v×q/2
W=V×q/2
चूँकि कार्य ही चालक में स्थतिज ऊर्जा के रूप में संचित है तो-
  [U=W=q×v/2].....(1)
c=q/v से समीकरण में q तथा v के मान रखने पर-
सूत्र-[U=q×v/2=c×v×v/2=q×q/2c]
नोट- प्रश्न-किया गया कार्य स्थतिज ऊर्जा के रूप में क्यों संचित होता है। कार्य का ऊर्जा से क्या सम्बन्ध है।
उत्तर-कार्य करने की क्षमता को ऊर्जा कहते है। तथा कार्य व ऊर्जा का मात्रक भी ‛जूल’ सामान है। यह तत्व गणित द्वारा प्रमाणित किया जा सकता है कि किसी यंत्र में जितनी ऊर्जा डाली जाये उतने ही परिमाण में हमें कार्य प्राप्त होता है उससे अधिक नहीं। यही शक्तिसातत्य का नियम है। अतः अब यह भी कहा जा सकता है कि किसी भी किये कार्य द्वारा हम किसी यन्त्र में ऊर्जा उतने ही परिमाण में संचित कर सकते है।
यही आधुनिक रूप में कार्य-ऊर्जा प्रमेय द्वारा सिद्ध किया जा सकता है। किसी स्प्रिंग को संपीडित करते समय जो कार्य करना पढता है वही कार्य उस स्प्रिंग में संचित ऊर्जा है। जिसे स्थितिज ऊर्जा कहते है।
अतः ऊर्जा किसी कार्य द्वारा ही जन्म लेती है। तथा कोई भी कार्य किसी ऊर्जा द्वारा ही संभव है।
विशेष-1 चालक को धनावेश दिया जाये या ऋणावेश, वैधुत स्थतिज ऊर्जा सदैव धनात्मक होती है।
2 यदि C व C' धारित वाले दो चालको के लिये-
१-यदि उन्हें समान विभव तक आवेशित किया जाये तो
U=C×V×V/2 से-
U/U'=C/C'
अतः अधिक धारिता के चालक की वैधुत स्थतिज ऊर्जा अधिक होगी।
२-यदि चालकों को सामान आवेशित किया जाये तो
U/U'=C/C'
अतः कम धारिता के चालक की वैधुत स्थतिज ऊर्जा अधिक होगी।
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