सिन्धु सभ्यता का धार्मिक जीवन |
सिन्धु सभ्यता का धार्मिक जीवन [RELIGIOUS LIFE OF INDUS CIVILIZATION]
सिन्धु सभ्यताकालीन धार्मिक जीवन के विषय में जानने के लिए पूर्णतः पुरातात्विक स्रोतों का ही सहारा लेना पड़ता है। पुरातात्विक स्रोतों के अतिरिक्त मेसोपोटामिया से प्राप्त लेख (जिनको पढ़ा जा चुका है) सिन्धु सभ्यताकालीन धर्म के विषय में जानकारी प्रदान करने में सहायक हैं। इन स्रोतों से ज्ञात होता है कि सिन्धु सभ्यताकालीन लोग निम्नांकित पूजा किया करते थे-
(1) मातृ देवी की पूजा- मातृ देवी सिन्धु सभ्यता के लोगों की प्रधान देवी थीं, जिनकी अनेक मूर्तियाँ खुदाई से प्राप्त हुई हैं। मातृ देवी की कुछ मूर्तियों में उन्हें आभूषण युक्त तथा कुछ में आभूषणविहीन दिखाया गया है । मातृ देवी की मूर्तियाँ धुएँ से रंगी हुई मिली हैं। अर्नेस्ट मैके का विचार है कि पूजा के समय इन मूर्तियों के सामने धूप जलाई जाती होगी। सिन्धु सभ्यता के लोग मातृ देवी को सम्पूर्ण लोक की जननी एवं पोषिका मानते थे। सम्भवत: मातृ देवी की पूजा के समय बलि भी दी जाती थी।
(2) शिव पूजा- हड़प्पा की खुदाई में एक ऐसी मूर्ति प्राप्त हुई है, जिससे शिव पूजा की जानकारी मिलती है। इस मूर्ति में एक पुरूष देवता को एक उच्च सिंहासन पर योगासन को मुद्रा में बैठा हुआ दिखाया गया है, जिनके तीन
मुख व तीन नेत्र हैं। उनके सिर पर सींगों वाला ऊंचा मुकुट, जो त्रिशूल की शक्ल का है, धारण है। विद्वानों का यह मानना है कि यह शिव की मूर्ति है। इस मूर्ति के अतिरिक्त हड़प्पा से मोहनजोदड़ो से अनेक लिंगों का प्राप्त होना भी इस बात की पुष्टि करता है कि 'शिव' सिन्धु सभ्यता के प्रमुख देवता थे।
(3) योनि पूजा- सिन्धु सभ्यता की खुदाई से अनेक छल्ले प्राप्त हुए हैं, जो सीप, मिट्टी और पत्थर आदि के बने हुए हैं। इतिहासकारों का मानना है कि ये छल्ले देवियों को योनि के प्रतीक थे, जिनकी पूजा की जाती थी।
(4) पशु पूजा- सिन्धु सभ्यता की खुदाई में प्राप्त अनेक मुद्राओं पर बैल, भैस आदि पशुओं के चित्र मिलते है, जिनसे उस समय पशु पूजा किये जाने का अनुमान किया जाता है।
(5) सूर्य पूजा— सिन्धु सभ्यता की खुदाई में प्राप्त कुछ मुद्राओं पर सूर्य के चिन्ह मिलते है, जिनसे यह अनुमान लगाया जाता है कि सिन्धु लोग सूर्य-पूजा करते थे।
(6) वृक्ष पूजा— सिन्धु सभ्यता के लोग वृक्षों की भी पूजा करते थे। उस समय नीम, खजूर, शीशम, बबूल व पीपल आदि वृक्षों की पूजा की जाती थी, किन्तु सर्वाधिक पवित्र वृक्ष पीपल माना जाता था।
(7) मृतक संस्कार- हड़प्पा और मोहनजोदड़ो के उत्खनन से प्राप्त सामग्री से ज्ञात होता है कि सिन्धु सभ्यता के लोग मृतक संस्कार के लिए तीन प्रकार की विधियाँ अपनाते थे-
(i) मृतक को ज्यों-का-त्यों दफनाना,
(ii) मृतक को पहले पशु-पक्षियों का आहार बनने के लिए खुले में छोड़ना और फिर उसकी अस्थियों को दफनाना,
(iii) मृतक को जलाकर उसकी राख व अस्थियों को कलश में भरकर भूमि में गाड़ना। उत्खनन में ऐसे अनेक कलश प्राप्त होने से इतिहासकारों ने अनुमान लगाया है कि उस समय मृतक संस्कार की यह विधि सर्वाधिक प्रचलित रही होगी।
इतिहास- सिन्धु सभ्यता का धार्मिक जीवन [RELIGIOUS LIFE OF INDUS CIVILIZATION]
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10:46 AM
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