इतिहास- मौर्य वंश [MAURYAN DYNASTY]

MAURYAN DYNASTY
मौर्य वंश  [MAURYAN DYNASTY]

मौर्य वंश  [MAURYAN DYNASTY]

मौर्य वंश का इतिहास जानने के साधन [SOURCES OF THE HISTORY OF MAURYAN DXNASTY]

मौर्यकालीन इतिहास को जानने के पर्याप्त साधन उपलब्ध हैं। मौर्यकाल के इतिहास जानने के साधनों को निम्नांकित भागों में विभाजित किया जा सकता है:-

(1) संस्कृत साहित्य- प्राचीनकाल में रचित संस्कृत भाषा के विभिन्न ग्रन्थ मौर्य-कालीन इतिहास के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं। संस्कृत भाषा में रचित 'अर्थशास्त्र’ मौर्य वंश के इतिहास के लिए सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण एवं प्रामाणिक ग्रन्थ माना जाता है, क्योंकि यह ग्रन्थ चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रधानमंत्री कौटिल्य द्वारा रचित है। मौर्यकाल पर प्रकाश डालने वाले संस्कृत ग्रन्थों में  'पुराण' भी महत्वपूर्ण हैं। पुराणों में न केवल मौर्यवंशीय राजाओं के नाम वरन उनसे सम्बन्धित विभिन्न घटनाओं का भी वर्णन प्राप्त होता है ।
अर्थशास्त्र एवं पुराणों के अतिरिक्त भी संस्कृत भाषा में रचित अन्य ग्रंथों, जैसे- विशाखदत्त द्वारा रचित 'मुद्राराक्षस', क्षेमेन्द्र द्वारा रचित 'वृहतकथामंजरी', सोमदेव द्वारा रचित 'कथासरितसागर' एवं महाकवि कालीदास द्वारा रचित 'मालविकाग्निमित्रम' आदि ग्रंथों से मौर्यों के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। 

(2) बौद्ध साहित्य- यद्यपि बौद्ध धर्म की प्रादुर्भाव छठी शताब्दी ई. पू. में हुआ था, किन्तु  बौद्ध धर्म का वास्तविक विस्तार मौर्य सम्राट अशोक के शासनकाल में हुआ था। इसलिए बौद्ध लेखकों ने अपनी रचनाओं में अशोक व्  मौर्य साम्राज्य को प्रमुख स्थान दिया। अतः बौद्ध साहित्य से मौर्यकालीन इतिहास के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। बौद्ध ग्रन्थों में 'दीपवंश, 'महावंश', 'महाबोधिवेश' 'मिलिन्दपह', 'दिव्यावदान' और 'मंजूश्रीमूलकल्प' आदि प्रमुख स्थान रखते हैं। इन बौद्ध ग्रन्थों से मौर्य इतिहास और संस्कृति को जानने में महत्वपूर्ण सहायता मिलती है ।

(3) जैन साहित्य- संस्कृत साहित्य और बौद्ध साहित्य की तुलना में जैन साहित्य ने मौर्यवंशीय इतिहास पर अधिक प्रकाश डाला है। जैन अनुश्रुति के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य जैन धर्म का अनुयायी था। इस कारण जैन-ग्रंथों  ने मौर्य वंश के इतिहास पर आरम्भ काल से ही प्रकाश डाला है। जैन ग्रन्थों में भद्रबाहु द्वारा रचित 'कल्पसूत्र', हेमचन्द्र द्वारा रचित 'परिशिष्ट-पर्व', प्रभासूरि द्वारा रचित 'विविध तीर्थकल्प', मेरुतुंग द्वारा रचित 'विचार-श्रेणी', श्रीचन्द्र द्वारा रचित 'कथाकोष', रामचन्द्र द्वारा रचित 'पुष्याश्रवकथाकोष' और हरिषेण द्वारा 'वृहत्कथाकोष' आदि ग्रंथों से मौर्यवंशीय इतिहास जानने में महत्वपूर्ण सहायता मिलती है ।

(4) यूनानी वृतान्त- यूनानी वृतान्त भी मौर्यवंशीय इतिहास के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं। यूनानी लेखकों में मैगस्थनीज का नाम अति महत्वपूर्ण है, मैगस्थनीज चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में यूनानी राजदूत के रूप में लम्बे समय तक रहा तथा उसने चन्द्रगुप्त मौर्य की शासन-व्यवस्था, सैन्य संचालन, राज्य की आर्थिक व सामाजिक स्थिति का गहन अध्ययन किया और 'इण्डिका' नामक ग्रन्थ की रचना की। यूनानी राजदूत मैगस्थनीज का वृतान्त मौर्यवंशीय इतिहास जानने के लिए अत्यन्त उपयोगी है। दुर्भाग्यवश मैगस्थनीज द्वारा रचित ‘इण्डिका' ग्रन्थ मूल रूप में उपलब्ध नहीं है, परन्तु बाद के यूनानी लेखकों ने ‘इण्डिका' उद्धरणों का समुचित उपयोग अपनी रचनाओं में किया है। मैगस्थनीज के अतिरिक्त भी अनेक यूनानी व्यक्ति, जो मौर्य दरबार में राजदूत रहे, ने भारत के विषय में ग्रंथों की रचना की, किन्तु दुर्भाग्य से इनमें से किसी का भी ग्रन्थ मूल रूप में उपलब्ध नहीं है। बाद के जिन लेखकों ने प्रचीन यूनानी लेखकों के वृतान्तों के उद्धरण उद्धृत किए, उनमें स्ट्रेबो (Strabo), प्लिनी (Pliny), डियोडोरस (Diodorus), प्लूटार्क (Plutarch), एरियन (Arrian), जस्टिन  (Justin) आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। इनके विवरणों से हमें मौर्यवंशीय इतिहास जानने में महत्वपूर्ण सहायता मिलती है ।

(5) पुरतात्विक स्त्रोत- मौर्यवंशीय इतिहास की जानकारी के लिए पुरातत्व सामग्री पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है । विभिन्न अभिलेख, विभिन्न स्थानों पर खुदाई किए जाने पर प्राप्त  हए मिट्टी के बर्तन व मूर्तियाँ आदि से मौर्यवंशीय जानकारी प्राप्त होती है। पुरातात्विक स्रोतों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान मौर्य सम्राट अशोक के अभिलेखों का है, जिनसे मौर्यकालीन राजनीतिक स्थिति, धार्मिक स्थिति, सामाजिक नैतिकता एवं बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। 
इस पर विवेचन से स्पष्ट है कि मौर्यवंशीय इतिहास प्रकाश डालने वाली सामग्री प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है, जिससे मौर्यकालीन इतिहास का सरलतापूर्वक निर्माण किया जा सकता है।

मौर्य साम्राज्य की स्थापना (Mauryan Rise of Empire)

ई.पू. चतुर्थ शताब्दी भारत के इतिहास में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है,क्योंकि इसी शताब्दी में भारत में सर्वप्रथम 'राजनीतिक एकता' प्रदान करने वाले मौर्य साम्राज्य की स्थापना हुई थी। मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य थे, जिनकी गणना भारत के महानतम् सम्राटों में की जाती है । मौर्य वंश की स्थापना से पूर्व भारतीय इतिहास का तिथिक्रम अत्यन्त स्पष्ट एवं विवादास्पद है, किन्तु मौर्यों के समय से भारत का इतिहास पौराणिक गाथाओं के स्थान पर ऐतिहासिक वृत्त का रूप धारण कर लेता है । भारत का वास्तविक ऐतिहासिक वृतान्त मौर्ययुग से ही मिलता है। यही कारण है कि चन्द्रगुप्त मौर्य को भारत का प्रथम ऐतिहासिक सम्राट माना जाता है।
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1 comment:

Rahul Singh Chouhan said...

Maurya VanshBharat itihas ka sabse shaktishali vansh tha

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