इतिहास- सिन्धु सभ्यता के महत्त्वपूर्ण स्थल [IMPORTANT PLACES OF INDUS CIVILIZATION]

IMPORTANT PLACES OF INDUS CIVILIZATION
सिन्धु सभ्यता के महत्त्वपूर्ण स्थल

सिन्धु सभ्यता के महत्त्वपूर्ण स्थल [IMPORTANT PLACES OF INDUS CIVILIZATION]

(1) हड़प्पा- हड़प्पासिन्धु सभ्यता का महत्वपूर्ण एवं प्रमुख स्थल माना जाता है। यह नगर पश्चिमी पंजाब के मॉण्टगुमरी जिले में लाहौर से लगभग 100 मील की दूरी पर स्थित है। 1921 ई. में रायबहादुर दयाराम साहनी ने इस स्थल की खुदाई करायी थी।  यह नगर सिन्धु सभ्यता का सबसे बड़ा नगर था। इसमें  समानान्तर चतुर्भुज के आकार का एक दुर्ग था, जिसमें छह कोठार मिले हैं। यहाँ के निवासी पक्के मकानों में रहते थे।

(2) मोहनजोदड़ो- मोहनजोदड़ो भी सिन्धु सभ्यता का प्रमुख नगर था। 1922 ई. में राखलदास बनर्जी ने इस स्थान की खोज की थी। मोहनजोदड़ो, वर्तमान पाकिस्तान के सिन्धु प्रान्त में लरकाना जिले में स्थित है। मोहनजोदड़ो का शाब्दिक अर्थ- 'मृतकों का टीला' है। इस नगर का यह नाम इस कारण पड़ा, क्योंकि इस नगर की खुदाई में सात तहें मिली, अतः यह नगर सात बार बना और सात बार नष्ट हुआ। इस नगर का निर्माण एक निश्चित योजना के आधार पर किया गया था। यहाँ सड़कों तथा नालियों का समुचित प्रबन्ध था। यहाँ के प्रत्येक मकान में स्नानागार भी होता था।

(3) चंहुदड़ो- चन्हुदड़ो, मोहनजोदड़ो से 130 किलोमीटर की दूरी पर दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। सिन्धु नदी यहाँ से वर्तमान में लगभग 21 किलोमीटर दूर से बहती है, किन्तु सिन्धु सभ्यता के काल में वह इसके बिल्कुल समीप बहती थी। चन्हुदड़ो, मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की तुलना में बहुत छोटा नगर था। डॉ. अर्नेस्ट मैके को इस स्थल की खुदाई में तीन संस्कृतियों के अवशेष प्राप्त हुए हैं। सबसे नीचे के स्तर में सिन्धु संस्कृति के चिह्न पाए गए हैं। डॉ,मैके का मत है कि सिन्धु सभ्यता के निर्माता चहुदड़ो में तीन सौ वर्ष तक आबाद रहे। यहाँ के लोग पक्की ईंटों की इमारतें बनाते थे।

(4) लोथल- पुरातत्वविदों के अनुसार यह नगर एक बन्दरगाह था। यह गुजरात में खम्भात की खाड़ी के ऊपर स्थित था। वर्ष 1954-55 ई. में भारत के पुरातत्व विभाग ने इस स्थल की खुदाई करवाई थी। यहाँ की खुदाई में जो सबसे महत्वपूर्ण चीज मिली है, वह एक विशाल गोदी (जहाजों के ठहरने का स्थान)  है। इसमें जहाजों को समुद्र की ओर ले जाने का समुचित प्रबन्ध था। यह गोदी 215 मीटर लम्बी और 37 मीटर चौड़ी है। विश्व में अन्यत्र कहीं इतने प्राचीन युग की कृत्रिम गोदियों का उदाहरण नहीं मिलता है। इसके अतिरिक्त यहाँ से अनेक प्रकार के ८
आभूषण, मुद्राएँ तथा मिट्टी के बर्तन भी मिले हैं।

(5) कालीबंगा- कालीबंगा, राजस्थान प्रान्त के गंगानगर जिले में प्राचीन सरस्वती नदी के किनारे स्थित है। कालीबंगा में दो टीले प्राप्त हुए हैं। इन टीलों की खुदाई से ज्ञात हुआ कि दोनों टीलों के चारों ओर रक्षा-दीवारों का निर्माण किया गया था। उत्खनन से प्राप्त सामग्री के आधार पर पता चलता है कि एक टीले का प्रयोग निवास के लिए किया जाता था और दूसरे टीले का प्रयोग किले के रूप में होता था, वहाँ पूजा-पाठ आदि के स्थान भी बने हुए थे। यहाँ से अनेक प्रकार के बर्तन, ताँबे के औजार, चूड़ियाँ, मिट्टी की मूर्तियाँ तथा खिलौने आदि भी प्राप्त हुए हैं। 

(6) बणावली- बणावली, हरियाणा राज्य के हिसार जिले में स्थित है। यहाँ से प्राप्त अवशेष बहुत कुछ कालीबंगा से मिलते जुलते हैं।

(7) सुत्कागेंडोर- यह स्थान करांची के पश्चिम में लगभग 300 मील की दूरी पर स्थित है। 1962 ई. में जॉर्ज डेल्स ने यहाँ सिन्धु नगर, दुर्ग और बंदरगाह का पता लगाया था। यद्यपि आज यह स्थान समुद्र तट से दूर है, परन्तु ऐसा अनुमान किया जाता है कि प्राचीनकाल में यह समुद्र तट पर स्थित एक बन्दरगाह था, जहाँ से सिन्धु सभ्यता के लोग बेबीलोन के साथ व्यापार करते थे।

(8) कोटदीजी- यह स्थान मोहनजोदड़ो से पूर्व में लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। 1955 एवं 1957 ई. में फजल अहमद खाँ ने यहाँ उत्खनन कराया था और यहीं से सिन्धु सभ्यता के अवशेष प्राप्त किए थे। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि सिन्धु सभ्यता के नीचे यहाँ पर एक अन्य सभ्यता, जिसे ‘कोटदीजी सभ्यता' कहा गया, के अवशेष भी प्राप्त हुए। फजल अहमद खाँ का अनुमान है कि प्राचीन ‘कोटदीजी सभ्यता' किसी समय अग्निकाण्ड के परिणामस्वरूप नष्ट हुई थी, उसके पश्चात् यहाँ सिन्धुवासियों ने अपनी बस्ती बसाई।

(9) रोपड़- यह स्थान पंजाब में स्थित है। यहाँ 1953-56 . में यज्ञदत्त शर्मा ने उत्खनन कार्य कराया था, जिससे यहाँ सिन्धु सभ्यता की अति महत्त्वपूर्ण सामग्री उपलब्ध हुई थी। यह उस समय सतलज नदी पर स्थित था, यहाँ पत्थर और मिट्टी के मकान बने थे । यहाँ एक कब्रिस्तान भी मिला है। यहाँ से एक मुद्रा भी प्राप्त हुई है। इसके अतिरिक्त यहाँ से मिट्टी के बर्तन, आभूषण एवं ताँबे की कुल्हाड़ी आदि भी प्राप्त हुए हैं।

(10) रंगपुर- यह स्थान लोथल से करीब 50 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में स्थित है। श्री रंगनाथ राव ने यहाँ 1953-54 ई. में खुदाई कराई थी। उनका मानना है कि जब बाढ़ के कारण लोथल क्षत-विक्षत हो गया तो वहाँ के लोगों ने भागकर रंगपुर में अपनी बस्ती बसाई। यहाँ भी सिन्धु-सभ्यता के पूर्व सिन्धु-सभ्यता के लोग रहते थे। सिन्धु सभ्यता की सामग्री में यहाँ प्राप्त कच्ची ईंटों के दुर्ग, नालियाँ, मृदभाण्ड, बाँट, पत्थर के फलक और मिट्टी के पिण्ड आदि
उल्लेखनीय हैं।
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