इतिहास- सिन्धु सभ्यता का राजनीतिक स्वरूप, नगर निर्माण एवं वास्तुकला [POLICAL NATURE, TOWN CONSTRUCTION AND ART OF BUILDING OF INDUS CIVILIZATION]
सिन्धु सभ्यता का राजनीतिक स्वरूप, नगर निर्माण एवं वास्तुकला |
सिन्धु सभ्यता का राजनीतिक स्वरूप [POLICAL NATURE OF INDUS CIVILIZATION]
सिन्धु सभ्यता के राजनीतिक स्वरूप का निर्धारण करना एक दुष्कर कार्य है, फिर भी विभिन्न विद्वानों ने इस विषय पर विभिन्न मत प्रतिपादित किए हैं। इस सन्दर्भ में हण्टर महोदय का विचार है कि सिन्धु सभ्यता के अन्तर्गत शासन व्यवस्था राजतन्त्रात्मक नहीं बल्कि लोकतन्त्रात्मक थी, जबकि मैके के अनुसार मोहनजोदड़ो में एक प्रतिनिधि शासक प्रशासन करता था। इसी सन्दर्भ में व्हीलर महोदय का विचार है कि मोहनजोदड़ो की शासन व्यवस्था धर्म गुरुओं और पुरोहितों के हाथों में केन्द्रित थी। सिन्धु सभ्यता के अन्तर्गत योजनाबद्ध निर्माण को देखते हुए यह माना जाता है कि नगरपालिका जैसी कोई सार्वजनिक संस्था अवश्य रही होगी। इस सन्दर्भ में विद्वान लेखक गार्डन चाइल्ड का कथन है, "सिन्धु सभ्यता के निवास गृहों, सार्वजनिक भवनों, स्नानागारों, विभिन्न मागों आदि का नियोजन तथा व्यवस्थित रूप यह प्रमाणित करता है कि यहाँ का प्रशासन विकसित एवं सुसंगठित था।" सिन्ध सभ्यता के राजनीतिक जीवन के जो भी प्रमाण उपलब्ध हैं, उनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि यहाँ का नागरिक जीवन सुरक्षित, शान्तिपूर्ण तथा व्यवस्थित था।
नगर निर्माण एवं वास्तुकला (TOWN CONSTRUCTION AND ART OF BUILDING)
(1) नगर निर्माण योजना- सिंधु सभ्यता का स्वरूप नगरीय था। सिन्धु सभ्यता की नगर योजना की आधार सामग्री हड़प्पा, मोहनजोदड़ों, चंहुदड़ों, कालीबंगा, लोथल बगावती से प्राप्त होती है। सिंधु सब्यता कालीन नगरों में चौड़ी-चौड़ी सड़के पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर जाती थीं, जो प्राय: एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। इस प्रकार प्रत्येक नगर अनेक खण्डों में अर्थात् मोहल्लों में बंट जाता था। प्रमुख सड़कों
गलियाँ निकलती थीं, जो एक से दो मीटर चौड़ी होती थीं। मोहनजोदड़ो में एक 11 मीटर चौड़ी सड़क भी थी, जो सम्भवतः राजमार्ग रही होगी। नगरों में जल निकासी की समुचित व्यवस्था होती थी । सड़कों के किनारे नालियाँ होती थीं,जो पक्की व ढकी हुई होती थीं।
(2) भवन निर्माण- सिन्धु सभ्यता के लोग नगर निर्माण की भाँति भवन निर्माण में भी अत्यन्त कुशल थे। इस तथ्य की पुष्टि हड़प्पा और मोहनजोदड़ो से प्राप्त भग्नावशेषों से होती है। सिन्धु सभ्यता में विभिन्न प्रकार के भवन प्राप्त हुए हैं, जिनका संक्षिप्त विवरण निम्नांकित है-
(क) साधारण भवन- साधारण लोगों के रहने के मकानों का निर्माण सड़क के दोनों ओर किया जाता था। साधारण भवनों का आकार जरूरत के अनुसार छोटा व बड़ा होता था। ये भवन एक से दो मंजिल तक होते थे। ऊपर की मंजिल पर जाने के लिए पत्थरों व ईंटों की सीढ़ियाँ होती थीं। भवन को बनाते समय हवा व प्रकाश का पूर्ण ध्यान रखा जाता था। भवनों में दरवाजे, खिड़कियाँ एवं रोशनदान, रसोईघर,स्नानगृह, आंगन व कुंआ भी होते थे। दरवाजे व छत लकड़ी के बनाए जाते थे। भवनों के दरवाजे मुख्य सड़क पर न खुलकर गली में खुलते थे । दीवारें बहुत मोटी बनाई जाती थीं। फर्श ईंटों, खड़िया और गारे से बनाया जाता था। भवनों में जल निकास की समुचित व्यवस्था की जाती थी ।
(ख) सार्वजनिक एवं राजकीय भवन- सिन्धु सभ्यता के विभिन्न स्थलों के उत्खनन के परिणामस्वरूप यह तथ्य प्रकाश में आया है कि साधारण भवनों के अतिरिक्त यहाँ पर सार्वजनिक एवं राजकीय भवन भी थे। मोहनजोदडो में एक विशाल भवन के अवशेष प्राप्त होते हैं, जो लगभग 10 मीटर लम्बा व 24 मीटर चौड़ा है,इस भवन की दीवारें 1.50 मीटर मोटी हैं। इस विशाल भवन में अनेक कमरे भण्डारागार व दो आगन हैं। मोहनजोदडो में इसी
एक अन्य विशाल भवन और प्राप्त हुआ है, जो 71 मीटर लम्बा और इतना ही चौडा है। इसमें प्रकार का एक विशाल हॉल है, जिसकी छत 20 स्तम्भों पर टिकी हुई है, इसके फर्श पर अनेक स्थानों पर चौकियाँ बनी हुई हैं। सम्भवतः इस भवन का प्रयोग विचार विनिमय के लिए होता होगा।
(ग) सार्वजनिक स्नानागार- मोहनजोदडो की खुदाई से एक विशाल स्नानागार भी प्राप्त हुआ है। यह विशाल स्नानागार एक विशाल भवन के मध्य में स्थित है। स्नानागार का जलाशय आयताकार है। यह 39 फीट चौड़ा व 8 फीट गहरा है। इसके प्रत्येक ओर जल तक पहुँचने के लिए ईंटों की सीढ़ियाँ हैं। जलाशय की दीवार व फर्श पक्की ईटों हआ है। जलाशय में जल निकास की समुचित व्यवस्था की गई थी। जलाशय के चारों ओर बरामदे हैं का बना तथा इनके पीछे कमरे बने हुए हैं। इतिहासकारों का अनमान है कि यह जलाशय सम्भवतः धार्मिक महत्व रखता था तथा पवित्र पर्वों पर लोग इसमें स्नान करते थे ।
(घ) अन्न भण्डारागार- हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो से कुछ अन्य विशाल भवन भी मिले है, जिन्हें इतिहासकार अन्न भण्डारगृह मानते हैं। यह अन्न भण्डारागार हड़प्पा में राजमार्ग के दोनों ओर 1.25 मीटर ऊंचे चबूतरों पर छह-छह की पंक्तियों में बने हुए हैं। अन्न भण्डारागारों की लम्बाई 18 मीटर और चौड़ाई 7 मीटर है।
इतिहास- सिन्धु सभ्यता का राजनीतिक स्वरूप, नगर निर्माण एवं वास्तुकला [POLICAL NATURE, TOWN CONSTRUCTION AND ART OF BUILDING OF INDUS CIVILIZATION]
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